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वह फुरसत के रात दिन !!!!!!!!

  • Writer: Arijit Bose
    Arijit Bose
  • Mar 6, 2017
  • 1 min read

MICHAEL PARIS

जाने किसकी तलाश में भटकता है ये मन

कड़ी धूप के शोलों में जलता है ये तंन

चलता चला जाता हूँ इस उमीद के साथ

के इस ज़माने में नये उजाले तो आएँगे

सोचता हूँ की वो दिन अपने साथ ढेर सारी खुशिया लाएँगे

एक अरसा हुआ की आँगन में रौनक कहीं खो सा गया है

मुद्दतें बीती की घर के मंदिर में दिए का तेज कम हो चला है

कुछ ना कर सके भगवान तो मेरे मन के अंधेरे कोने में ही उजाला कर दे

आसमान छूने की क्षमता और काबिलियत और सुकूंके पल ही देदे

जीवन की आपाधापी में कुछ बैठ जीने के मोहलत ही देदे

हर मंज़र क्यूँ लगता अंजाना सा

हर शक़स क्यूँ लगे है इस शहेर में बेगाना सा

उस ज़माने की बात ना पूछो जब मेरा भी था एक आशियाना

आज लगता उस बस्ती में

था मेरा एक घर पुराना सा

आज हूँ ऐसी जगह बसा

जहाँ हैं हम और कई अंजान चेहरे

उन्ही अंजान चेहरों के बीच

कहीं ज़िम्मेदारियों का बोझ

कुछ लड़कपन के किससे

और उसी धूप छाओं  की दिनचर्या के बीच

हम अपने तक़दीर लिखते

यश का लालच कहें या मजबूरी

कार्यभार का एहसास अपने ज़हेन में ले कर हर दिन हम आगे बढ़ते

धुन्द और कड़ी धूप में ढूनडता बचपन के वो दिन

शरारत भरे पलों का वो गुलदस्ता कहीं गया हमसे छिन

आज याद करके फ़ुर्सत के रात दिन हंसता हूँ

क्यूंकी हंसते हंसते कट जाते हैं रात दिन

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