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वो लड़कपन के दिन

  • Writer: Arijit Bose
    Arijit Bose
  • Jan 5, 2017
  • 1 min read
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वो लड़कपन  के  दिन वह  सादगी  के  पल न  जलने  की  बू और ना ही किसी तरह का क्लेश वो आसमान तले खुराफात कभी टाँग खीचना तो कभी मज़े मज़े में खुद ही जोक बन जाना क्या दिन थे वो भी आवारगी के यारों के संग बिताए वो कई पल जिन पलों में थी हर सेकेंड कोई ना कोई हलचल

ढूंढता हूँ कभी धुँद में तो कभी धूप में वो बचपन के पल जीवन की आपाधापी में कही गया मुझ से छिन आज चाय की चुस्की लेते हुए या चिंतन मनन में याद आते हैं वो दिन कैसे कहूँ कैसा लगता है उन चंद यारों के बिन वो टाँग खींचना तफ़री के दिनों में ट्रीट लेना पॉकेट मनी इकहट्टा कर अपनी इच्छाओं को जीना जेब भले ही भारी हो चला है पर कैसे कहूँ कैसा होता है मस्ती से जीना

प्रोफेशनलिसम के युग में काश आवारगी का होता अलग महीना उन टाइट शेड्यूल्स में भी फिर होता एक बदमाशी का ज़माना ज़िंदगी में याराना का अलग ही है माएना ना हर कोई  बना मस्ताना और ना ही हर शक़स सीखा फ़िक़र को धुएँ में उड़ाना आज के धुँद भरे मौसम में लगता है ये टाइम समझने और समझने में काश के कोई समझे के वो लड़कपन के दिनों को लगते सदीयां भूलने में

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