लिखते लिखते
- Arijit Bose
- Dec 16, 2016
- 1 min read

इस रात के अँधेरे में
टिमटिमाते तारों की रौनक भी
क्या अजीब नज़ारे लाती है
चाँद हँसता है मुझ पर
तो जुगनू मेरे अंदर के अँधेरे को रोशन करते हैं
कैसे समझाऊँ की ये रात अपने साथ कैसी मदहोशी लाती
अपने साथ ठन्डे हवा के झोंके लाती
इन्ही रातों में माँ अक्सर लोरियां, कहानियां सुनाया करती
कहानियां सुना करता था मैं लड़कपन में
आज उसी तर्ज पर कहानी लिखते लिखते करतब दिखाया करता हूँ
कभी सुनी कभी अनसुनी कहानियों का पिटारा दुनिया के सामने खोलता
कोई सुनता, कोई समझता और कोई देखता
कोई देख कर भी अनदेखा कर चला जाय करता है
कहानीकार बन तो गया पर ब्लॉकबस्टर की खोज आज भी जारी है
कोई कभी कहीं तो ये कहता की अभी तो लंबी पारी है
वक़्त बीता , समय बीता, लोग बदले , काम करने के तरीके बदले
पर जो न बदला तोह वह था मेरी कलम का चलना
किसी की राजनीती , तोह किसी का प्यार
किसी की निंदा , तोह किसी का सत्कार
लिखता रहता हर दिन इन्ही चीज़ों पर बारम्बार
क्या था और क्या बन गया सभी इस कलम के करिश्मे हैं
जिन्होंने मुझे अपनी शरण में लिया वह भी क्या फ़रिश्ते हैं
रात को कमसकम नींद आती
माँ बाबूजी के सीख मुझे जिमेदारियों का एहसास दिलाती
क्या पता कल लिखते लिखते मेरे कदम डगमगा जाएँ
क्या पता का l नौकरी की दौड़ में मेरे आकाओं का मन किसी और पे लग जाए
क्या पता कल सच की अदालत में मेरे ही जुबां लड़खड़ा जाए
तो ए दोस्त एक बार मुझे संभालना अपने दोस्ती की कसम
कहीं ये स्क्रिप्टराइटर और उसका तेज कम हो जाए तो तुम्ही लगाना मरहम
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