यूँही कुरेदता रहता राख दिल का
- Arijit Bose
- Aug 31, 2017
- 1 min read

है कोई काबिल रफू करने वाला
कुछ दिल पे लगे पुराने टाँके खुल गये हैं
नवाबों के शेहेर में रहता एक दिलजला हूँ
दिलजलों के शहेर में फिरता एक मनचला हूँ
कोशिश करता हूँ एक दिल ही जीत लून
क्या पता ज़माने भर को मनाने के चक्कर में मेरा ही दिल ना टूट जाए
परिंदा हूँ उड़ने की इच्छा दिल में रखता हूँ
पर ज़मीन को भी नापने का तजर्बा ले के चलता हूँ
कभी धूप कभी छाँव, धूप की तपिश में जलते हैं ये पावं
बस अब दो ही तो हैं हम, एक मैं, मजधार और मेरा नाओ
कभी गुठने छिल जाते है कभी छाले पड़ जाते हैं
कभी काटें चुभते हैं तो कभी पासे पलट भी जाते हैं
यून तो कई यादें सॅंजो के रखे हैं दिल में बस वो उसकी याद है जो बार बार सताती
कुछ ठोकरे खाईं तो समझा बड़ा होना पड़ेगा
वरना बचपना तो कल तक मेरी सबसे अच्छी सहेली थी
ख्वाब देखते देखते इक उम्र बीती है
जाने कब किस उम्र में दीदारे सुकून होगा
ज़रा रुक रुक के चल ए ज़िंदगी
जाने क्यूँ लगे है तू बड़ी जल्दी में है
मिनटों में गुज़र रहे पल
जो अभी जिया भी नही मैं
Comments