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यादों की बारात

  • Writer: Arijit Bose
    Arijit Bose
  • Feb 14, 2017
  • 2 min read
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रात के अंधेरे में जुगनूओं को पकड़ना

चायकी चुस्कियों के साथ यारों के साथ गुपशुप

खुले आसमान के नीचे दोस्तों का आधुनिक गीत गाना

कोई बजाता गिटार तो कोई सुनता गुपचुप

आसमान तले टिमटिमाती तारों का पहरा

चाँद होता अपने पूरे शबाब पर

और दिखता उसका मुस्कुराता हुआ चेहरा

रातें ऐसे गुज़रती मानो सूरज जल्दी जाग गया हो

आज वोही रातें याद आती

वो रातें भी क्या रातें थी

वो रातें भी क्या रातें थी

इम्तिहान की घड़ी आए तो मानो

रातें, कॉफी और किताब के साथ गुज़रती

रात भर किताबें पलटते

और नये नये कॉन्सेप्ट को आखरी मिनिट पे पड़ते

बचपना कहिए या शरारत

उन रातों में ही पूरे साल का कसर निकालते

जब मिल बैठते सब यार और बस रटते के सहारे कोर्स को समझते

कभी टहलते एक कोने से दूसरे कोने

कभी सर पकड़ बैठते किसी जगह

तो कभी एक दूसरे से विचार विमर्श कर समझते

अपनी जिगयसाओं को एक दूसरे के साथ बाँटते

आज अचानक वो बीते हुए दिन याद गये

उन यारों की बात सोच आँखें भर आई

कुछ ग़लत नही होगा अगर कहा जाए

वो रातें भी क्या रातें थी

किसी के वर्षगाँठ पर खाना खाना

या फिर एक दूसरे पे जान छिरकना

पैसे मिला कर एक गिफ्ट यारों को खरीद देना

या फिर इनोसेन्स के नाम पर सिर्फ़ जाके विश कर देना

रात में गाना और डॅन्स कर

दोस्त की बर्थडे पे हॉस्टिल में हुरदंग करना

मानो आज याद गया वो गुज़रा पल और ज़माना

वो भी क्या दौर था जब रात को पढ़ना, लिखना या मौज करना

बन गयी थी एक रीति

यारों के साथ लॅपटॉप पे पिक्चर देखना

ऐसी थी हमारी आदत और नीति

वो दौर फिर कब आए क्या पता

पर उमीद है फिर होंगे फिर कभी इक्खट्टा

उन रातों की मस्ती

उन रातों का जोश

उन रातों की यादें ना कभी पड़ी फीकी

उनमे ना हमने कभी खो दिया होश

उन यारों से काफ़ी कुछ हमने सीखी

ना रखा हमने उनके प्रति कोई रोष

लिखते कुछ मुद्ों पर और होते मदहोश

यून तो हैं बेबाक और सोचते खुद को बॅटमॅन से कम नही

पर हम अंधेरी रातों में सुनसान राहों पर घूमते नही

हम ना शहेंशाह और ना शक्तिमान

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