फिर वोही आशियाना
- Arijit Bose
- Aug 6, 2017
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कुछ अजीब सा इत्तेफ़ाक़ है
की मैं फिर उसी रास्ते से गुज़रा
जहाँ कभी आशियाना हुआ करता था हमारा
फिर उसी चौखट पे जा खड़ा हुआ
जहाँ कभी बचपन अंग्राई लिया करती थी
फिर वोही दादी नानी के किस्से याद आ गये
जो उस आँगन में सुना करता था
जब उस अजब सी दुनिया में मशगूल रहा करता था
वो भी एक दौर था ये भी एक दौर है
बस फ़र्क इतनी सी की
बस अब ज़हेन में यादें भर रह गयी हैं
हम तो भूल चुके थे उन नटखट पलों को
सोचा आज फिर उन सुकून के पलों को जीता चलूं
जो अपने पीछे छूट गये उनको याद करता चलूं
सोचता हूँ यादों की उस झोली में से
कुछ किस्से सुनाता चलूं
ज़िंदगी बहुत छोटी है
फ़िकर को धुएँ में उड़ाता चलूं
व्यस्त दिनचर्या के बीच
अपने आप को कुछ देर के लिए बहलाता चलूं
किसी को कोई बात चुभे
ऐसा कुछ भी ना करूँ
बस बची दबी कुचली ख्वाहिशों को जीता चलूं
कुछ दर्द इतनी गहरी जो सहा ना जाए
कुछ हसीन पलों के साथी जिनके बगैर रहा नही जाए
वो मौसम का जादू जो दिल को बहलाए
वो खिड़की से आती किरने
जो हैं अंधेरे को देती भगाए
वो रूठने मनाने हँसने हँसाने का दौर हैं बिताए
कुछ ग़लतफैमियाँ ऐसी भी जो दिल को दुखाए
वो चुननी, मुन्नी और पप्पू जिन के साथ हुँ समय बिताए
आज फिर उसी बचपने की है याद हमें सताए
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