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Writer's pictureArijit Bose

कभी सचिन की वाह वाही किए बिना ही गुरु रमाकांत आचरेकर ने उन्हे बना दिया क्रिकेट का भगवान

एक अच्छे बल्लेबाज़ होने के साथ साथ सचिन रमेश तेंदुलकर को कई उपाधियों से नवाज़ा जा चुका है. उन्हे मास्टर ब्लास्टर और लिट्ल मास्टर जैसे नामों से अक्सर पुकारा जाता है. पर उन्हें भी एक बात का मलाल ज़िंदगी भर रहेगा.

उन्हे देश विदेश में ख्याति प्राप्त हुई और प्यार मिला पर उनके गुरु द्रोण रमाकांत आचरेकर ने उन्हें कभी भी बहुत खूब नही कहा ,जब वो अच्छी क्रिकेट की खुश्बू मैदान पर बिखेरते.

सचिन और उनके कोच, रमाकांत की जोड़ी को लोग द्रोणाचर्या और अर्जुन, या रामकृष्ण परमहांसा और स्वामी विवेकानंदा के रूप में देखते हैं.

रमाकांत आचरेकर जिन्होने कुछ ही दिन पहले अंतिम साँस ली, कभी सचिन को शाबाशी नही दिए. शायद इसी लिए की वो कामयाब बनें और एक दिन दुनिया में जलवा बिखेरें.

जब सचिन तेंदुलकर को भारत रत्ना मिला तो उन्होनें आख़िरकार सचिन को वेल डन कह ही दिया.

आज रमाकांत सर हुमारे बीच नही हैं पर उनके कई बहुमूल्य अर्जुन आज क्रिकेट को नयी उँचाइयों पे ले जा रहे हैं.

आचरेकर को द्रोणाचर्या सम्मान से 1990 में नवाज़ा गया. कुछ वर्ष पूर्व उन्हें पद्मा श्री मिला 2010 में. उन्हें क्रिकेट के शीर्ष कोच के तौर पर देखा जाता है.

तेंदुलकर हमेशा आचरेकर के साथ रहे. आचरेकर की आखरी यात्रा में तेंदुलकर के अलावा उनके साथ विनोद कॅंब्ली, बलविंदर सिंग संधु, चंद्रकांत पंडित, अतुल रानाडे, अमोल मज़ूंदार, रमेश पोवार, पारस म्म्बरे, मुंबई रणजी कोच विनायक सामंत, नीलेश कुलकर्णी और विनोद राघवन बने रहे.

तेंदुलकर को रमाकांत आचरेकर का सबसे काबिल स्टूडेंट माना जाता है. तेंदुलकर ने अपने करियर में 34,357 अंतरराष्ट्रिया रन्स बनाए, सौ अंतर राष्ट्रिया शतक बनाए और 201 अंतर राष्ट्रिया विकेट लिए.

सचिन ने अपने ऑटोबाइयोग्रफी प्लेयिंग इट माइ वे में रमाकांत आचरेकर का ख़ासा ज़िकर किया है.

सचिन की मानें तो 11 – 12 साल की उमर में जब भी उन्हें मौका मिलता वो रमाकांत सर के स्कूटर पे बैठते और प्रॅक्टीस मॅच खेलने चले जाते. कभी वो आज़ाद मैदान में खेलते. कभी शिवाजी पार्क में और ये कारवाँ बढ़ता जाता. ये रमाकांत आचरेकर की ही देन थी की मुंबई के कई हिस्सों में छोटे बड़े मंचों पर सचिन को एक अच्छा खिलाड़ी माना जाने लगा.

माना जाता है की अगर आचरेकर के कहने पर सचिन का परिवार शारदाशरम विद्या मंदिर नही आते तो शायद दुनिया को ये अद्भुत नगीना नही मिलता.

आचरेकर ने भी कभी ये नही सोचा था की सचिन कभी इतना ख्याति पूर्ण क्रिकेटर बनेंगे.

आचरेकर के बारे में ये भी कहा जाता है की वो छुप के अपने स्टूडेंट्स को देखते और फिर उन्हें अपनी ट्रूटियाँ बताते.

गुरु के देहांत के बाद, सचिन ने एक भाव भीनी श्रद्धांजलि देते हुए कहा – “वेल प्लेड, सर, आशा करता हूँ आप जहाँ भी हों अपने क्रिकेट के ज्ञान को बखूबी फैलाते रहेंगे.

ऐसे समय में जब देश में क्रिकेट को एक धर्म की तरह देखा जाता है तो आचरेकर का जाना क्रिकेट जगत के लिए एक अपूरणिया क्षति है. उनके करोड़ो चाहने वाले उनके गौरवपूर्ण इतिहास को हमेशा याद रखेंगे.

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