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एक और दिन गुज़रा जीवन का

  • Writer: Arijit Bose
    Arijit Bose
  • Feb 14, 2017
  • 2 min read
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सुबह से श्याम हुआ  कड़ी धूप जाती और अपने साथ ठंडी हवा के थपेड़े लाती

धरती आई झिलमिल  तारों और  नर्म छाओं  के तले

रास्तों का भीड़ भड़क्का और उधमी बच्चों की टोली

अपने अपने घरों को चले

इन्ही सब पल पल की हलचल के बीच लोगों के दिनभर का दिनचर्या भी ख़तम होता चला

फिर वोही बात मॅन में उठता की क्या फिर एक और दिन गुज़रा जीवन का

हर दिन की तरह आज भी वोही सेम रुटीन के मुताबिक चलना

असाइनमेंट्स का मिलना और समय अनुसार उनको पूरा करना

यारों के साथ हसना बोलना चुटकुलों का गुदगुदाना

किसी ग़लती पर बॉस का डांटना और  काबिलेतारीफ रिज़ल्ट पर हंस के गले लगाना

ये सब हर ए क दिन का हिस्सा बन जाता

दिन कब बीतती और बिच्छरने का वक़्त आता पता ही ना चलता

फिर वोही बात मॅन  में उठता की क्या फिर एक और दिन गुज़रा जीवन का

कुछ यार हंस के चिढ़ाते यार तू तो थोड़ा बूढ़ा हो गया

कोई कहता की बस एक दिन गुज़रा  जीवन में अब होगा कुछ नया

कुछ हो ना हो आज भी साथ चलता है यारों का साया

मैं मानता नही मुझे है पूरा यकीन की वो सब हैं यहीं कहीं और मैं कत्तई  नही घबराया

यून दिन गुज़रते की समय के चलने का अंदाज़ा ना लग पता

ये यकीन करना नामुमकिन हो चलता की दिन यूँ गुज़र जाता मानो ये सारा हो भगवान का किया कराया

फिर उस दिन यही सोचा मैं की  क्या फिर एक और दिन गुज़रा जीवन का

यून दिन के चौबीस घंटे कैसे बीतते पता ही ना चलता

गुज़रते वक़्त को रोकना नामुमकिन सा हो जाता

पर समझने की बात ये है की हर घंटे का बीतना अपने आप में एक सबक होता

जीवन और उसके इर्दगिर्द कार्यकलापों में रहती समय की पाबंदियों से नाता बाँध जाता

हर बात को सोच समझ के जान के बस एक ही बात दिल से निकलती

की  क्या फिर एक और दिन गुज़रा जीवन का

हर दिन नये सीख, नयी चुनौतियाँ, नयी खुशियाँ और कुछ तक़लीफें अपने साथ लाती

हर दिन जीवन में जिए गये सेक्रोन दिनों में कहीं ना कहीं समा जाती

हर दिन हर पल हर लम्हा कहीं ना कहीं अपनी इंसान के जीवन में छाप छोड़ जाती

दिनों के फेरे में इंसान की अंतरात्मा मुस्कुराती

काई बार एक दिन बन जाता है कैय्यो के जीवन का एक मिसाल जो है जीती जागती

यून गुज़रते दिन बस एक ही बात ज़ुबान से बुलवाती

की  क्या फिर एक और दिन गुज़रा जीवन का

यून दिल की बातें आप तक पहुँचना भी एक दिन का खेल है

यून स्पष्ट तौर पर बातों का कह पाने से होता लोगों का मेल है

बात अच्छी लगे या बुरी इसका श्रेह उस दिन को जाता है और तर्क़ सिर्फ़ यही की वो दिन फैल है

किसी एक दिन को किस्मत आज़माना भी कहीं ना कहीं अपने कर्मों में से एक है

मॅन आज भी हर एक दिन के बीतने पर सिर्फ़ यही कहता है

आज फिर एक और दिन बीता जीवन का क्या ये वाकई  है सही?

आख़िर में  समझ में यही आता की यही हक़ीक़त है

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