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अब बस यादें

  • Writer: Arijit Bose
    Arijit Bose
  • Feb 14, 2017
  • 1 min read
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यादें ही तो बस रह गयी हैं

पर उनके सहारे जिया नही जाता

कुछ बातें सुनाने को रह गयी हैं

पर किसी से अब वो सुना नही जाता

ताऊम्र तेरे इंतेज़ार में लम्हे बीतेंगे

ये हमसे सहा नही जाता

क्या करूँ मेरे हुमनफाज़

तुम बिन जिया नही जाता

इंसान हूँ और सीने में दिल को संजोए रखता हूँ

आवारा पागल हूँ

जो दिल्लगी करने की गुस्ताख़ी करता हूँ

भले ही दरमियाँ बढ़ गये हों

पर आशिकी से परहेज़ नही करता हूँ

दिलजलों के शहेर में

मैं भी अपना आशियाना बसाया करता हूँ

यादें ही तो बस रह गयी हैं

पर उनके सहारे जिया नही जाता

यून रूठना मानना तो समझ आता है

पर मेरे दिल से कोई पूछे उसपे क्या बीत्ती है

मैं तो रोज़ बैठा रहूं

उस घर के चौखट पे जहाँ तू रहा करती है

बेखुदी का ऐसा आलम है

की हर ज़र्रे में तू दिखती है

हाँ मैं भी सब से यही कहा करता था

हाँ हूमें मोहब्बत है, मोहब्बत है, मोहब्बत है

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