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वो मखमली आवाज़ का जादूगर जिसने पंडित नेहरू को धराशायी कर दिया था

  • Writer: Arijit Bose
    Arijit Bose
  • Aug 4, 2018
  • 3 min read
mohdrafi

मखमली आवाज़ के जादूगर मोहम्मद रफ़ी एक बहुत ही हर दिल अज़ीज़ फनकार थे. जिस पाकीज़गी के साथ वो भजन गाते थे उसे सुनने के लिए हर शक़स बेताब रहता. अनगिनत हिट्स दे चुके रफ़ी उन चुनिंदे नगीनों में से थे जिन्होने ना केवल हिन्दी में बल्कि अलग अलग भाषाओं में अपने आवाज़ का जादू बिखेरा.

यून तो कई किससे रफ़ी साब के मशहूर हैं पर उनका एक किस्सा काफ़ी प्रचलित है. रफ़ी एक शाम अपनी एक कार्यक्रम के लिए पहुँचे. ऑडियेन्स में ज़रा सा भी जगा नही बचा था. उनके चाहने वाले जो उनसे बेशुमार मोहब्बत करते वो रफ़ी साब के एक दर्शन के लिए बेताब थे.

पब्लिक के बीच बैठा एक ख़ास शक़स आम आदमी की तरह सबके बीच बैठा रहा. रफ़ी साब आए और उन्होने अपना गायन शुरू किया. बेहद माँग पे रफ़ी साब ने चाहूँगा मैं तुझे सांझ सवेरे गाया. पल भर बाद वो ख़ास शक़स रो पड़ा. वो शक़स और कोई नही पूर्व प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू थे.

इस वाक़ये ने रफ़ी और पंडित नेहरू को काफ़ी करीब ला दिया था. दोनो एक दूसरे की इज़्ज़त भी करते और कभी मिल भी लेते. ऐसे ही एक मुलाक़ात ने एक और किस्सा दुनिया को दिया. उस दिन पंडित नेहरू चाट खा रहे थे. खट्टी दही से बनी चाट को जब नेहरू ने रफ़ी साब को ऑफर किया तो मालूम पड़ा की रफ़ी सेहत का ख़ास ध्यान देते हैं, ख़ास कर गले का जो गायक के लिए ब्रह्मास्त्र से कम नही होता.

जब रफ़ी ने पंडित नेहरू से कहा की माफ़ कीजिएगा मैं ये खा नही सकता तो नेहरू बोल पड़े अरे मैं आप को और कुछ खिलाऊँगा नहीं, ले लीजिए

इसके बाद जो रफ़ी साब ने बोला उसने नेहरू का दिल जीत लिया. वो बोले पंडित जी अगर मेरी आवाज़ सिर्फ़ मेरी होती तो मैं ज़रूर खा लेता लेकिन अब मेरी आवाज़ सिर्फ़ मेरी नही रह गयी है, अब ये पूरे हिन्दुस्तान की हो गयी है, जिसका ख्याल मुझे रखना ही पड़ता है.

नेहरू ने तुरंत रफ़ी साब को गले लगा लिया और उनके पीठ को थपथपाते हुए शाबाशी दी.

शायद उनकी खूबियों और गायकी के महारत की वजह से ही मन्ना दा ने उनके बारे में कहा था की रफ़ी सब कुछ गा सकते हैं, जो जल्दी हर कोई नही कर पाता.

रफ़ी ने अपने लंबे करियर में हर उस भाषा में गाया जो उनके रेंज के अंदर थी और उसकी फयरिस्ट लंबी है.

रफ़ी ने हिन्दी के अलावा तेलुगु, कन्नडा, गुजराती, उर्दू, पंजाबी, ओड़िया, बंगाली, भोजपुरी, मराठी, सिंधी और कोंकनी में गाना गाया. विदेशी भाषाओं में उनको डच, क्रीयोल, पर्षियन, सिनलीज़, इंग्लीश और अरबिक भाषाओं में भी काम करने का मौका मिला. OP नय्यर ने अगर आशा के साथ कई यादगार नगमे दिए तो पुरुष प्लेबॅक गायक में रफ़ी के साथ उनकी जोड़ी को काफ़ी सराहा गया.

अमृतसर के पास स्थित गाँव कोटला सुल्तान सिंग में रफ़ी आज़ादी के काफ़ी वर्ष पहले जन्मे. शास्त्रिय संगीत में अपने आप को माहिर बनाने के लिए उन्होने उस्ताद घुलाम अली ख़ान के सात रियाज़ किया. उन्होने संगीत जगत में पहला काम पंजाबी फिल्म गुल बलोच के लिए किया ज़ीनत बेगम के लिए, गाना था ‘सोणिये नि हीरिए नि’ कॉंपोज़िशन था श्यामसुंदर का.

“उड़े जब जब ज़ूलफें तेरी” और “दीवाना हुआ बादल” जैसे रफ़ी साब के गाने आज भी उनको जीवित रखे हैं.

उनके लाईव शोस मसलन—वेंब्ली कान्फरेन्स सेंटर और रॉयल आल्बर्ट हॉल आज भी मशहूर हैं.

पद्मा श्री विजेता मोहम्मद रफ़ी का बुरा दौर तब शुरू हुआ जब किशोर कुमार के सितारे आराधना के बाद बुलंदी पर थे. पर उनकी निष्टा और द्रन निश्चय उन्हे फिल्म्फैर अवॉर्ड और राष्ट्रिय सम्मान से दूर नही रख सकी. हालाकी ये भी उतना ही बड़ा सच है की किशोर और रफ़ी एक दूसरे के लिए काफ़ी संवेदनशील थे.

उनके करियर का आखरी गाना था लक्ष्मीकांत प्यारेलाल के निर्देशन में फिल्म आस पास का “शाम फिर क्यूँ उदास.”

कहा जाता है रफ़ी साब का मन गायिकी के तरफ तब आकर्षित हुआ जब उन्होने एक फकीर को गाते सुना. रफ़ी को एक गाने के लिए सबसे पहले एक रुपये मिले थे.

चाहे वो आप के पहलू मैं आकर रो दिए जैसा गज़ल हो, ओ दुनिया के रखवाले जैसा भजन हो, शंकेर-जैकिशन की कॉंपोज़िशन और शम्मी कपूर पर फिल्माया गया चाहे कोई मुझे जुंगली कहे हो, उनकी गायिकी को टक्कर देने वाला कोई नही था.

सुरों के सरताज मोहम्मद रफ़ी ने देशवासियों की आँखें नम तब कर दी जब वो दुनिया को जुलाइ 31, 1980 के दिन अलविदा कह गये. कहा जाता है लाखों की तादात में लोग शोक में डूबे थे

आर पार, बैजू बावरा, बरसात की रात, दोस्ती, एक मुसाफिर एक हसीना, हम दोनो, प्यासा, शहीद, तीसरी मंज़िल जैसे अनगिनत फिल्मों में गाने वाले रफ़ी जब परलोक सिधार गये तो मुंबई में एक जन सैलाब सड़कों पे टूट पड़ा उनकी अंतिम यात्रा में श्रद्धांजलि के लिए.

ऐसे युग में जब हर कोई फनकार मानता है खुद को, रफ़ी जैसे सज्जन कलाकार आने वाली पीढ़ियों के लिए एक प्रेरणा स्रोत रहेंगे क्यूंकी उन्होने मेहनत, लगन और उपर वाले की रहमत से सबका दिल जीत लिया.

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