यादों के झरोखों से: मल्हौर की बातें एमिटी वासी ही जाने
- Arijit Bose
- Apr 24, 2019
- 2 min read

Newly inaugurated Malhaur flyover
राजेश खन्ना ने कभी कहा था – वो भी एक दौर था और ये भी एक दौर है. अपने ज़माने का सुपरहित डाइलॉग था. आज वोही बात दोबारा याद आ गयी जब मल्हौर फ्लाइ ओवर का चित्र दोस्त के FB स्टेटस पर देखा.
जब से एमिटी, मल्हौर गया, सब लोगों ने मेरी तरह मल्हौर क्रॉसिंग को पानी पी पी के कोसा था. गाड़ी की लंबी कतारें, लंबे समय तक ट्रेन का ना आना, धूप, बारिश और सर्दी के दिनों में टकटकी लगा का एक दूसरे को देखना और इसी बीच स्कूटर और गाड़ियों पे बैठे सवारियों की अपने बीच की पंचायत.
कोई खड़े खड़े व्हाट्सएप स्टेटस टटोलता, कोई जल्दी से एक फ़ेसबुक या ट्विटर स्टेटस शेर करता. और लड़कियों को पाउट वाली सेल्फिे लेने का अच्छा मौका मिलता. एक ऐसे समय जब हर सेकेंड कीमती होता है, इस दिनचर्या के हिस्से ने हम सबको धीरज धरने की कला से भी बखूबी अवगत कराया.
सरकारें आईं और गयीं, बॅचस आए गये पर लाइफ इन मल्हौर कभी ना बदला, क्यूंकी वो कहते हैं ना, समय से पहले और मुक़द्दर में जो लिखा होता है उससे ज़्यादा कभी कुछ नही मिलता है.
कभी चाय पीना या जलेबी और डालमोट का चखना जिस गलियारे में सुहाना लगता था, आज उसी महफ़िल में शायद हम और आप ना होंगे, क्यूंकी अब ऊँची उड़ान भरने के लिए मल्हौर फ्लाइ ओवर आतुर है.
अब कैसे कहेंगे अपने टीचर्स से मॅम क्रॉसिंग बंद था तो लेट हो गये – अटेंडेन्स दे दीजिए प्लीज़, ना ही एमिटी ना आने के बहाने दे पाएँगे हम और आप, क़यास ये भी लगाया जा रहा है की अब जिनके गाड़ी घोड़े क्रॉसिंग के पार से घूम के चले जाते थे, अब हँसी खुशी 40 एकर के एमिटी विश्वविद्यालय के साथ अपना नया रिश्ता जोड़ेंगे.
मल्हौर की 10 साल की कहानियाँ आज के युग में कई विद्यार्थी बयाँ करते नही थकते, कॉलेज के कई इवेंट में अक्सर एक छोटी झलक मल्हौर और उसके इर्द गिर्द घूमते ज़िंदगी की भी है. हर बाशिंदा एमिटी का कभी ना कभी इस क्रॉसिंग से गुज़रा ज़रूर है, पर आज जब फ्लाइ ओवर बन गया तो ब्रिड्ज के साइड्स पे पतली सड़कों पर संतुलित ढंग से गाड़ी चलाना आदमी को बॅलेन्स और कंट्रोल की सही परिभाषा सिखा गयी.
क्या पता हम तेरी गलियों में फिर कभी ढाबा बोलें या नही, ये तो पता नही पर मल्हौर एक जीवन का अभिन्न अंग था, है और रहेगा. क्यूंकी मंदिर रूपी एमिटी में जाने के लिए थोड़ा परिश्रम और कष्ट तो बनता है बॉस.
अगर WH डेवीस की कविता लेशर की कुछ लाइन्स अपनी तरह लिखूं तो ये कहना ग़लत नही होगा की –
What is this life, if full of care
No time to stand and stare
No time to stand where woods we pass
Where squirrels hide their nuts in grass
No time to stand beneath the clouds in Malhaur
And stare at passing trains as long as sheep or cows
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