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मास्टर अवनीश यादव बहुत याद आयेंगे

  • Writer: Arijit Bose
    Arijit Bose
  • Sep 4, 2016
  • 3 min read
avnish

Master Avnish Yadav – Source Patrika .com


माँ बाबूजी ने जब पड़ने के लिए दाखिला विद्यालय में करवाया तब एक ही बात कही थी, बेटा अपने बड़े बुज़ुर्ग और खास कर शिक्षकों को इज़्ज़त देना और कभी भी उनका तिरस्कार मत करना। आज कुछ ही दिन में हम शिक्षक दिवस मनाएंगे। फिर उन महानुभावों को याद करेंगे जिनके बिना शायद हम कुछ नहीं। पर क्या हम वाकई उनको मानते हैं। क्या हम उनको पूछते भी हैं की मैम या सर आप अच्छे तो हैं।  उनके पीठ पीछे उनकी अच्छाइयों का गुड़ गान किया ? क्या हम उनके तकलीफ को कभी समझ पाये ? क्या हम कभी उनके सुख में नहीं तो दुःख में भागीदार बने ?

ऐसी कई बातें मेरे ज़हन में तब आयी जब हालही में मैंने अपने गुरुओं को सालों बाद देखा।  जहां हर एक ने मुझे यही पूछा की बेटा  तुम खुश हो न, दिल में कहीं एक टीस  रह गयी की मैंने शायद उनसे ये न पूछा और न ही मैंने पूछने की कोशिश की। खैर छोड़िये आपको ले चलते हैं एक ऐसे कहानी की ओर जिशे पढ़के मुझे लगा की अच्छाई अभी भी इस दुनिया में ज़िंदा है।  कहीं न कहीं मुझे भी लगा की आज का युवा वर्ग अपने शिक्षकों को मानते हैं और अश्रु बहते हैं उनकी आँखों से जब वह विद्यालय को छोड़ने या ट्रांसफर पे निकलने का निर्णय लेते हैं।

भारत देश में हर दिन कहानियां स्कूल कॉलेज से आती हैं। हालही में खबरें आयो की टीचर ने स्टूडेंट को बेदर्दी से पीटा। यौन शोषण की भी कहानियां आती रहती हैं कुछ स्कूलों से पर ये एक पॉजिटिव गाथा है।  प्राथमिक शिक्षा के भारत में खस्ता हालात होने के बावजूद अवनीश यादव जैसे लोग हैं जो हमें हर दिन ये ढांढस दिलाते हैं की अब भी कुछ नहीं बिगड़ा। जहां कुछ लोग दुखड़ा रोते  रहते हैं वहीं अवनीश ने बदलाव लाके दिखाया।

अवनीश हर शिक्षक की तरह कुछ क्रांतिकारी करना चाहते थे जिस्से भारत का भविष्य अच्छा हो। जब वह गोरी बाज़ार के एक प्राथमिक विद्यालय में पढने पहुंचे तो उनको पता चला की स्कूल तो है पर बच्चे वहां पड़ने नहीं आते।  २००९ साल की ये बात है। जब उन्होंने पता लगाया तो उनके ये समझ आयी की मजदूरों के ज़्यादातर बच्चे उनके साथ साइट पर चले जाते हैं और कोई पड़ने नहीं आता।

गाँव गाँव गली गली घूमने के बाद उन्होंने कई बच्चों को स्कूल लौटने के लिए मना लिया। एक बार वह लौटे तो मास्टर साहब ने अनपढ़ बच्चों को लिखने पड़ने का सलीका सिख दिया। बच्चे इतने काबिल बन गए की बिना हिचकिचाए वह अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर बात करने लगे। छे साल का लंबा सफर ऐसे अचानक ख़तम हो जाएगा किसी ने सोचा भी नहीं था।  जब खबर आया की मास्टरजी अब स्कूल छोड़  देंगे तो बच्चे और अभिभावक सब रो पड़े।

जिस वक्त देश में प्राथमिक शिक्षा की हालत पतली हो. जिस वक्त देश में 60 लाख से ज्यादा बच्चे स्कूल की दहलीज तक भी ना पहुंच पाते हों. ऐसे वक्त में ये  वह हैं जिन्होंने  अपने दम पर दूसरे शिक्षकों के लिए मिसाल पेश की है.

ऐसे मास्टर हैं तभी बच्चे भी बोल पड़े मास्टर साहब आप हमें छोड़कर मत जाओ.

मेरी माँ ने भी जीवन के कई वसंत शिक्षक की ज़िम्मेदारी को दिए हैं और ऐसे ही कर्मठ लोग हमें हमेशा से ईमानदारी से काम करने की प्रेरणा देते हैं।

सभी शिक्षकों को मेरा श्रद्धा और नमन।

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