जय तुम्हारी हमेशा विजय हो, अपने कॉलेज के टीचर हमेशा उससे कहा करते थे। जिस लड़के को कभी एक लड़की ने 40 रुपये की पनीर को लेकर के ताना मारा था, आज उसने उन सभी कड़वे सपनों को भुलाके ना केवल शोहरत की बुलंदी हासिल की, बल्कि उस शोहरत, इज़्ज़त और रुतबे का सही इस्तेमाल कर समाज में उन ज़रूरत मंदों का सहारा बन रहे हैं जिनके लिए लॉकडाउन, एक बहुत बड़ा अभिशाप बन के आया है। मूलतः हमीरपुर के निवासी और आजकल मुंबई में अपनी पैठ जमा चुके ज़य विजय कॉमेडी के जगत में वो नायाब हीरा है जिस ने भट्टी में तप्के अपनी चमक हासिल की। जिसने ग़रीबी और गाँव की ज़िंदगी को देखा हो उसके लिए उसी हमीरपुर के मजदूरों के लिए सहानूभूति स्वाभाविक है। देश भर में जगह जगह पर मज़दूर हज़ारों किलोमीटर चल रहे हैं क्यूंकी उनके पास गुज़र बसर करने का उपाए नही है। साइकल लेकर बहुतों को चलते देखा गया है। और मीडीया आए दिन इनकी बातें करती ही है। ऐसे में जयविजय का कोमल मॅन पिघला और उन्होंने हमीरपुर के मजदूरों को सहायता करने का बीड़ा उठाया। तकरीबन 6 से 7 लोगों को जय ने संभाला। उन्होंने बाकी और लोगों को भी कहा है की हमीरपुर निवासी और भी हों तो उनकी भी जानकारी उन तक पहुँचाई जाए। गौरतलब है की जय ने ना केवल उनके ख़ान पान का ख़याल रखा बल्कि वो उनके बेंक अकाउंट में पैसे भी जमा करवाए। लेकिन उनका मज़ाकिया अंदाज़ भी कुछ कम नही, इस खबर को कुछ दिन पूर्व साझा करते हुए जय ने ये भी कहा, की उनको लोगों की मदत करके पब्लिसिटी करने का बिल्कुल भी मॅन नही। इसकी बातें करके मैं इसके पीछे के सोच को और छोटा ही बनाऊंगा। उन्होंने आगे कहा की वो 8 से 10 लोगों को अधिकारिक तौर पर मदद तो किए ही हैं, साथ ही लगभग 50 से 60 ज़िंदगियों में एक उजाला लाने की कोशिश की है। हंसते हुए वो बताते हैं, आर्टिकल छापने के बाद उनके पास मेसेजस की लाइन लगी है की उनका जीवन भी बदल जाए। हंस के कहते हैं भाई, अपने सिटी के लोगों की मदद की थी दिल से, हर किसी की रेस्पॉन्सिबिलिटी नहीं ले सकता. साधारण आदमी हूँ, अंबानी नहीं।
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