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“मैं पारंपरिक शिल्प को समकालीन दृष्टिकोण के साथ जोड़ता हूं”- शैलेश पंडित

  • Writer: Arijit Bose
    Arijit Bose
  • Oct 14, 2019
  • 3 min read

  1. हमें अपनी परंपरा का निर्वहन करना चाहिए।

  2. सिरेमिक आर्ट अपरंपरागत और अभिनव के लिए है…जो प्रकृति से संबंधित है…जो पांच तत्व हैं (आग,हवा,पानी,आकाश और पृथ्वी)

शैलेश पंडित कला में प्राप्त पद्मश्री बी आर पंडित के सुपुत्र हैं। बातचीत के दौरान शैलेश ने बताया कि मैं नेचर को लेकर काम करता हूँ। प्रकृति में विभिन्न प्रकार के टेक्सचर मिलते हैं। मैं उन्हें बहुत करीब से देखता हूँ और उन्हें अपने विचारों के साथ जोड़ता हूँ फिर अपने सिरेमिक कलाकृतियों के साथ उनका प्रयोग करता हूँ। जैसे पेड़ों के तनों पर छाल (जडरिंग) को लेकर, पहाड़ो और खड्डों को लेकर भी मैंने तमाम उन टेक्सचर को अपने काम के साथ जोड़ता हूँ। मिट्टी के बर्तन बनाना हमारा पुस्तैनी काम है। हमारे दादा जी बर्तन बनाते थे, पिता जी ने उस परंपरा को बढ़ाते हुए कुछ प्रयोग किया। मैं भी उसी परंपरा को निर्वहन कर रहा हूँ लेकिन उस परंपरा को आज के समकालीन कला से जोड़ते हुए। मैं पारंपरिक शिल्प को समकालीन दृष्टिकोण के साथ जोड़ता हूं,” मिट्टी से चीजों को बनाना समय, प्रयास और अभ्यास लेता है। बड़े ही धैर्य की जरूरत होती है। मिट्टी के बर्तनों को सजाने और रचनात्मकता प्रदान करने की आदिम और व्यापक कला माना जाता है।मिट्टी के बर्तन से बने पदार्थ आमतौर पर उपयोगी होते हैं, उदाहरण के लिए पानी का भंडारण करने वाले बर्तन या प्लेट, कटोरे जो भोजन परोसने और खाने में उपयोग किए जाते हैं।मिट्टी को मूर्तियों, सजावटी वस्तुओं और क्या नहीं, के रूप में बदल दिया जाता है। मिट्टी पृथ्वी का एक प्राकृतिक तत्व है जो लाखों वर्षों से पृथ्वी की पपड़ी के भीतर चट्टान के विघटन के बाद बनती जाती है। एक कुम्हार अपने उत्पाद को न केवल अपने हाथ से बना सकता है बल्कि कई तरह से अपने तरीके से पहिये से बना सकता है।मिट्टी के बर्तन बनाने के कई तरीके हैं और यह सब उन कलाकारों पर निर्भर करता है जो इसे बनाते हैं। शैलेश डेकोरेटिव के लिए ग्लेज का इस्तेमाल करते हैं। अपने विचारों के साथ प्रयोग करते हैं। शैलेश , वीर कोटक के साथ मिलकर सेरामिक इंस्टालेशन शीर्षक ” एमिनेंट सिटीजन” जो दिल्ली के श्राइन गैलेरी में मार्च 2018 को किया। इसमें सेरामिक के बने काफ़ी संख्या में बॉक्स फॉर्म है।7 बॉक्स (7 फ़ीट) । जो एक पिलर्स का रूप धारण किये हुए थे। सातों बॉक्स एक दूसरे के ऊपर रखे हुए थे। जिसके पीछे एक संदेश है। हर पिलर में अलग टेक्चर है हर टेक्सचर समाज के अलग अलग वर्ग को प्रदर्शित करते हैं। पिलर के सबसे टॉप पर एक गोल्डेन बॉक्स है। गोल्ड बॉक्स जो सबसे सुपीरियर सोसाइटी को दर्शाता है। इसमें एक निम्न वर्ग से लेकर उच्च वर्ग तक को दिखाने के विचार से इस इंस्टालेशन का निर्माण शैलेश ने किया था।





Creative work by artist Shailesh Pandit

शैलेश पंडित को आल इंडिया फाइन आर्ट्स एंड क्राफ्ट सोसाइटी नई दिल्ली की राष्ट्रीय पुरस्कार 2016 में सेसेरामिक में मिला। जिसका शीर्षक ” डमरू ऑन ग्लोब” था। जिसमे माध्यम के रूप में सेरामिक और स्टील का इस्तेमाल किया गया। शैलेश पंडित काफी बड़े बड़े पॉट्स का निर्माण करते हैं और अलग अलग टेक्सचर के साथ प्रयोग भी करते हैं। इसके लिए तमाम रासायनिक पदार्थ का इस्तेमाल भी करते हैं जिसके कारण बर्तनों पर अलग और सुंदर इफेक्ट आते हैं जो कलाप्रेमियों को आकर्षित करने में सहायक होते हैं। शैलेश के विचार- सामाजिक सरोकारों से जुड़े हुए हैं। जो इनके काम मे दिखते हैं। टेक्निकली तौर पर शैलेश प्रयोगशील व्यक्ति हैं। ग्लेज सेरामिक में केमिस्ट्री है। ब्लू ग्लेज( कॉपर , कोबाल्ट कार्बोनेट), ब्रॉन्ज गोल्ड के लिए कॉपर ऑक्साइड, इसमें बहुत सारे तरीके है जो तापमान पर भी निर्भर करते हैं साथ हमारी स्किल भी महत्वपूर्ण है।

शैलेश बी पंडित का जन्म 1982 में सिरेमिक कलाकार परिवार में हुआ। वे मृद्भांड, मूर्तिकला और मृत्तिका स्थापना में माहिर हैं। इनके दादा एक पारंपरिक कुम्हार थे और इनके पिता ( पद्मश्री बी आर पंडित ) एक स्टूडियो कुम्हार हैं जिन्हें 2013 में सेरामिक आर्ट में पद्मश्री और । स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने विज्ञान धारा को कालेज के विषय के रूप में चुना जिससे उन्हें मृत्तिका में ग्लेज़ की रसायन-शास्त्र को समझने में सहायता मिली। पांडिचेरी में रेमीकर और डेबोरा स्मिथ के तहत “गोल्डन ब्रिज मिट्टी के बर्तनों” के बारे में जानने के अलावा पांडिचेरी में उनके नाम का प्रदर्शन (बिना सूचना के बदलाव के) के लिए रेमीकर की सहायता के लिए उन्होंने सीमोरोजा आर्ट गैलरी, एम. एस. एस. में प्रदर्शन किया। विश्वविद्यालय, बिल्मत जीरमिक्स, यामिनी, नींबू और घास, जहांगीर कला दीर्घा और अखिल भारतीय ललित कला और शिल्प सोसायटी। नेहरू विज्ञान केंद्र, लालित्या फाउंडेशन तथा आल इंडिया फाइन आर्ट्स एंड क्राफ्ट सोसाइटी नई दिल्ली द्वारा 2016 में पुरस्कार प्रदान किए गए हैं। सेंट एक्सवियर्स हाई स्कूल आदि जैसे स्कूलों में कार्यशाला और डेमोंस्ट्रेशन का आयोजन भी किया है। वर्तमान में मुम्बई स्थित मीरा भायंदर में अपने स्टूडियों में कार्य कर रहे हैं |

( लेखक एवं कलाकार भूपेंद्र के अस्थाना की कलम से)

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