भारत की वो लक्ष्मी जिसके हौसले को तेज़ाब जला ना सकी
- Arijit Bose
- Apr 2, 2019
- 3 min read

लक्ष्मी अगरवाल आज कल सुर्खियाँ बटोर रही हैं. देश में उनकी कहानी में हर कोई दिलचस्पी ले रहा है. बड़े बड़े मंचों की वो शोभा भी बढ़ा रही हैं, लेकिन उनकी असल ज़िंदगी इस चका चौन्द से विपरीत है. जब अपना तक़लीफ़ बड़ा लगने लगे तो आस पास नज़र दौड़ा लेता हूँ तो पता चलता है की मैं भीड़ में अकेला पीड़ा में नही हूँ और भी हैं.
एक लेखक होने के नाते मेरे मन में लक्ष्मी का एक छोटा सा फोन पे इंटरव्यू करने की इच्छा जागी. पहले मैने उन्हे एक ट्विटर हॅंडल पे मेसेज भेजा. कोई जवाब नही आया. मैने उनके ही संस्था से उनका नंबर लिया और उनको टेक्स्ट किया की मैं आपसे एक इंटरव्यू के सिलसिले में पूछना चाहता हूँ अफ़सोस कोई जवाब नही आया. पर ये मुझे अच्छा लगा क्यूंकी लक्ष्मी शायद अपनी लक्ष्मण रेखा जानती हैं.
शिरोस हांग आउट लखनऊ में जाने का अवसर प्राप्त हुआ है मुझे, और वहाँ पर लक्ष्मी के अच्छे कार्यों की जानकारी मिली. पर उनकी ज़िंदगी के जद्दोजहद के बारे में अध्यन और पढ़ाई के बाद ही जानने को मिला.
एक ऐसे देश में जहाँ एक साल में लगभग 300 छोटे बड़े आसिड अटॅक होते हैं वहाँ लक्ष्मी ने खुद को भी संभाला और अपने जैसे सैकड़ों लोगों को जीने का सहारा दिया . ये लक्ष्मी और उनके साथी रूपा की ही कोशिशें थी की आज आसिड बिक्री पे लगाम लग पाया है. इन्ही की कोशिशों के चलते आज आसिड विक्टिम्स को 3 लाख की रकम मिलती है अगर ग़लत हो उनके साथ.
लक्ष्मी महेज़ 15 की थी जब 2005 में ख़ान मार्केट में एक बुकस्टोर के पास उन्हे एक 32 साल के सरफिरे आदमी की प्रताड़ना झेलनी पड़ी. उस आदमी की आशिकी कहिए या विकृत मानसिकता की लक्ष्मी को तेज़ाब से झुलसना पड़ा. आज एक तरफ जहाँ लक्ष्मी अपने जैसे तमाम लोगों के लिए प्रेरणा हैं, वोहीं पुराने ज़ख़्म भुलाए नही भूलते. कई सर्जरी के बाद आज जीवन पटरी पर तो है पर चेहरा खोने का टीस बार बार दर्द देता हैं उन्हें.
अपने अनोखे प्यार के लिए भी वो खबरों में बनी रहीं. उनको आलोक आलोक दीक्षित नाम के एक पत्रकार से प्यार हुआ और उनकी एक छोटी बेटी पिहु उनके प्यार का गवाह बनी जिसका जनम मार्च 25, 2015 को हुआ.
आलोक और लक्ष्मी अब अलग रहते हैं. लक्ष्मी के ज़िंदगी में संकट भी आए क्यूंकी उन्हे अपनी संस्था छाँव फाउंडेशन से अलग होना पड़ा. बहेरहाल वो सामाजिक बदलाओ के लिए संघर्ष करती रहीं, उन्होने जाकर नाना मंचों पर अपनी बात रखी. रॅंप वॉक से ले कर छोटे छोटे काम करने पर भी उनके भरण पोषण पर संकट के बादल मंडराने लगे. बॉलिवुड के खिलाड़ी कुमार अक्षय कुमार ने आगे आकर उनका साथ दिया.
अपने अदम्य साहस, हौसला और समाज के कुरीतियों को मिटाने के इरादों के लिए उन्हे पुरस्कृत किया गया. अमेरिका की फर्स्ट लेडी मिशेल ओबामा के द्वारा उन्हे सम्मान मिला आसिड अटॅक्स पर अपना लोहा बुलंद करने के लिए. उन्हे NDTV Indian of the Year का भी सम्मान प्राप्त है. उनका कॅंपेन StopSaleAcid काफ़ी प्रचलित है देश विदेश में.
जीवन में लक्ष्मी की सबसे बड़ी जीत तब हुई जब वो उनको प्रताड़ित करने वाले गुनहगारों को जेल भिजवा पाईं. उनकी याचिका को 27,000 हस्ताक्षर मिले थे. उन्होने न्याय के लिए भूक हड़ताल भी किया.
2017 में, लक्ष्मी और उनके कुछ साथियों ने, आसिड अटॅक पीड़ित लोगों के जीवन यापन के लिए उन्हे टॅटू बनाने के कला से भी अवगत कराया.
एक ऐसे समाज में जहाँ एक नारी को पूर्णतः समान नही मिलता उनकी कहानी जो बॉलिवुड बताने जा रहा है, आशा है की पीड़ित लोगों के जीवन के प्रति नज़रिए को बदलेंगे. छपाक में दीपिका पादुकोण मालती नाम से लक्ष्मी की किरदार अदा करेंगी.
फिल्म मेघना गुलज़ार द्वारा निर्देशित है.
मेघना गुलज़ार की छपाक, जन्वरी 10, 2020 को रिलीस होगी और उमीद है की ये फिल्म समाज को ना केवल आएना दिखाएगी, बल्कि लक्ष्मी को उसके हक़ की खुशी भी दिलाएगी.
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