बेपनाह मोहब्बत के बादशाह राज कपूर भी कभी अकेलेपन के शिकार थे
- Arijit Bose
- Jun 2, 2019
- 4 min read

सारी दुनिया पर राज करने वाला शोमेन जब नरगिस से बिच्छरा तो यून लगा मानो तन्हाई उसकी सहेली बन गयी हो| उसके टूटे दिल को कोई तब संभाल ना पाया……
हम लोग ऐसे समय में जीते हैं जब लिंक अप और ब्रेक अप आम बात है, पर कुछ किस्से ऐसे भी हैं बॉलीवुड में जो इन सब के बहुत ऊपर है| क्या ग़ज़ब संयोग है की राज कपूर की पुण्यतिथि के एक दिन पहले ही नरगिस दत्त की साल गिरह मनाई जाती है| और ऐसे में उनकी मोहब्बत का ज़िक्र ना हो तो कुछ अधूरा सा महसूस होता है|
हाल फिलहाल में RK स्टूडियोस के बंद होने के बाद काफ़ी कुछ लिखा जा चुका है, पर बहुत कम ही लोग जानते हैं की राज और नरगिस की ही मोहब्बत पर आधारित था RK स्टूडियोस का लोगो जिसमे नरगिस और राज कपूर को पोज़ देते हुए देखा जा सकता है|
गौर से देखिए तो उस लोगो में राज के बिखरे बाल, सुडौल बदन और एक वाइयोलिन पकड़े नरगिस के साथ देखा जा सकता है| शायद ही कोई बॉलीवुड की प्रेम कहानी होगी जो इतनी प्रचलित हो| कपूर जो की इस साल 95 होते अगर वो जीवित होते, उन्होने एक बार कहा था की उनके बच्चों की मा उनकी पत्नी थी, परंतु उनके फिल्मों की मा नरगिस थी|
राज और नरगिस की पहली मुलाकात तब हुई जब नरगिस के आठ फिल्मों ने चार चाँद लगा दिया था, 1945 में, और राज नये नये कलाकार थे|
दोनो की जुगलबंदी जो 1948 के आग फिल्म से शुरू हुई वो श्रोताओं के सर चढ़ कर बोलने लगी और बरसात फिल्म आते आते हर एक के ज़ुबान पर था| नरगिस को राज इतने पसंद थे की उन्होनें मन ही मन राज को अपना हमदम मान लिया था|
उन्होने समय, मन और धन सब उनके फिल्मों पर क़ुरबान कर दिया जिससे राज को फायेदा हो| जब पैसों का संकट RK स्टूडियोस पर आया तो उन्होने अपने सोने के कंगन बेच दिए| बहुत सारे चर्चित प्रोड्यूसर्स के साथ उन्होने उस दौर में इस लिए काम किया की कुछ धन राशि जुटा सकें|
राज, जिनके लिए माना जाता है की उन्होने मोहब्बत के बारीकियों को हिन्दी सिनिमा को सिखाया, उनके लिए नरगिस एक प्रेमी, अभिनेत्री, दोस्त और प्रोत्साहन के स्रोत के अलावा एक जीवन संगिनी थी|
नरगिस का प्यार इतने ऊफान पे था की राज को नरगिस से फिल्मों में जुदा करना मुश्किल था|
इतनी शिद्दत से मोहब्बत के बाद जब, नरगिस ने सुनील दत्त से शादी करने का मॅन बनाया तो राज टूट चुके थे|
उनको इतना ज़ोर का धक्का लगा था की वो शराब पीने लगे गम भूलने के लिए और अक्सर रोते थे| नरगिस और राज की दूरी तब बढ़ने लगी जब उन्हे ये महसूस हुआ की उन्हे मन पसंद क़िरदार जीने को नही मिल रहे थे|
चाहे वो श्री 420 हो या फिर और फिल्में, एक ऐसी टीस दिल में नरगिस के घर कर गयी की उन्होने मदर इंडिया के लिए अपनी हाँहि भर दी. जब पिक्चर रिलीस हुई तो राज के लिए बुरी खबर आई की सुनील और नरगिस एक दूसरे के हो गये थे|
राज के लिए सुनील की ये सबसे बड़ी गद्दारी थी और इस सब के चलते राज कपूर के करियर पे गहरा असर पड़ा|
यहाँ तक की जब कॅन्सर पीड़ित नरगिस ने आखरी साँस ली तो राज आए पर दूर से ही आखरी अलविदा बोल के चले गये| उन्होने तब कहा था मेरे सब दोस्त चले जा रहे हैं| काले चश्मे के पीछे उस दिन की उदासीनता को बहुत कम ही लोग भाप पाए थे |
राज कपूर जिनको भारत का चार्ली चॅप्लिन भी कहा जाता था वो ना केवल आक्टर थे, उन्होने आचे फिल्मों की लंबी लड़ी लगा दी थी देश में. पेशावॉर में जन्मे राज ने फिल्मों को हर पल जिया|
राज कपूर ने 1987 में दादासाहेब फाल्के पुरस्कार जीता. उन्हें 1971 में पद्मा भूषण से नवाज़ा गया|
फिल्मों के युगपुरुष और महानायक के रूप में आज भी राज कपूर को देखा जाता है|
उनके कलात्मकता की छाप आग, बरसात, श्री 420 और आवारा में बखूबी झलकती है|
भारत से लेकर रशिया तक “आवारा हूँ, या गर्दिश में हू आसमान का तारा हूँ,” “बरसात मैं हमसे मिले तुम साजन तुमसे मिले हम,” “मेरा जूता है जापानी, यह पतलून हिन्दुस्तानी,” “घर आया मेरा परदेसी,” “दम भर जो उधर मुँह फेरे ओ चंदा,” और “प्यार हुआ इकरार हुआ है प्यार से फिर क्यों डरता है दिल,” जैसे गाने आज भी हूमें उनकी याद दिलाती रहती है|
उनको सुरीला पहचान देने वाले मुकेश जब गुज़रे तब राज ने कहा था की आज मेरा आवाज़ चला गया|
राज की फिल्म संगम ने फिल्मों की दुनिया में नये कीर्तिमान स्थापित किए थे|
राज और राजेंद्र की फिल्मों को ख़ासा पसंद किया गया|
अच्छी सब्जेक्ट पे फिल्म बनाने वालों में से एक, राज ने गंगा पर आधारित राम तेरी गंगा मैली हो गयी बनाया तो लोग वाह वाही करते थक नही रहे थे|
हिना, मेरा नाम जोकर और काग़ज़ के फूल ने भी राज को ये दिखाने का मौका दिया की वो अपने समय के कलाकारों से बहुत आगे सोचते थे|
राज जिन्हे शोमन का खिताब मिला था उन्हे 3 राष्ट्रीय सम्मान, 11 फ़िल्मफेर पुरस्कार और उनके आवारा को टाइम ने सर्वश्रेस्थ 10 अभिनायों में जगह दी| विदेशी मूल के क्लार्क गेबल से उनकी तुलना कई बार की गयी है|
उनके करियर का सबसे पहला फिल्म था 1935 का इंक़लाब |
आखरी सफल फिल्म उनकी थी 1964 का संगम|
राज ने 1946 में आख़िरकार कृष्णा मल्होत्रा से शादी कर ली|
राज और कृष्णा के तीन बच्चे थे – रणधीर, ऋषि और राजीव. उनके दो बच्चियाँ थी ऋतु नंदा और रीमा जैन|
कहा जाता है की राज का व्यजयंतीमाला और दक्षिण भारत की पद्मिनी से भी प्रेम प्रसंग था|
उनके कई फिल्मों में देश प्रेम का भी संदेश था| आज के युग में जब बॉलीवुड में 250 से 350 फिल्में बनती हैं, एक और राज और नरगिस की ज़रूरत है जो कला और फिल्मों की पाकीज़गी को बरकरार रखे|
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