शास्त्रीय संगीत कहीं ना कहीं आज के युग में कम ही सुनाई देता है और उसकी बारीक़ियाँ समझने का मौका कम ही मिलता है. खैर शनिवार की श्याम पंडित शिव कुमार शर्मा के क्लास में जाने का मौका मिला . काफ़ी सरल और संक्षिप्त तरीके से पंडित जी ने कुछ शास्त्रीय संगीत के बारीक़ियाँ सिखाई जन मानस को. श्याम में चार चाँद लगाने के लिए उन्होने संतूर के मधुर ध्वनि से सबको सराबोर कर दीया. राग पूर्णाकल्याण, मिश्रा खमाज से उन्होने लखनऊ वासियों को रूबरू कराया.
उन्होने हमें रूपक और तीन ताल का भी परिचय दिया. संगत पे थे तबला में महारत हासिल और पंडित छननुलाल मिश्रा के सुपुत्र पंडित राम कुमार मिश्रा. उनकी जुगलबंदी ने शाम को और भी सुंदर बनाया.
एक ऐसे समय जब शास्त्रीय संगीत के जानकार और उसकी चर्चा करने वाले कम हो रहे हैं तो पंडित जी ने बड़े सरल अंदाज़ में शाम की शुरुआत ये कहके की, की शास्त्रीय संगीत को समझने के लिए इंसान को बहुत बड़ा ज्ञानी होने की ज़रूरत नही. उन्होने संत गाडगे प्रेक्षाग्रह में बैठे श्रोताओं से कहा की जैसे लखनऊ का ज़ायक़ा इंसान खा के समझते हैं वैसे ही संगीत को सुन के आनंद लिया जाता है.
जब संतूर की साधना में लीन पंडित शिव कुमार शर्मा ने समा बाँधा तो पूरी पब्लिक तालियों की गड़गराहट से गूँज उठी. 79 वर्षीय शिव कुमार शर्मा उन चंद अनमोल रत्नों में से हैं जिन्होने भारतीय शास्त्रीय संगीत को एक नया आयाम दिया है. बहुत ही सरल मॅन के पंडित जी जब स्टेज पे आए तो पूरा प्रेक्षाग्रह खड़ा हो गया उनको श्रद्धा पूर्वक स्वागत करने के लिए.
संतूर को अंतरराष्ट्रिया स्तर पर अगर किसीने जगह दी है तो वो पंडित शिव कुमार शर्मा हैं. फ्यूषन म्यूज़िक के क्षेत्रा में पंडित शिव कुमार शर्मा और पंडित हरी प्रसाद चौरसिया की जोड़ी काफ़ी मशहूर रही.
पंडित शिव कुमार शर्मा के गुरु थे बनारस के पंडित बड़े रामदासजी. संतूर को पुराने ज़माने में शता-तंत्री वीना भी कहा जाता था
ख़ासकर कश्मीर घाटी में सुने जाने वाले संतूर की आज विश्व भर में पंडितजी के वजह से सुना जाता है.
उस्ताद ज़ाकिर हूसेन और पंडित हरिप्रसाद चौरसिया के साथ उन्होने काफ़ी यादगार धुनें तैय्यार की. उनके रेकॉर्ड्स में ख़ास कर कॉल ऑफ थे वॅली, संप्रदाया, एलिमेंट्स: वॉटर, म्यूज़िक ऑफ थे माउंटन्स, मेघ मल्हार ने लोगों को मंत्रमुग्ध किया
पंडितजी को पद्मश्री, पद्मा विभूषण, संगीत नाटक अकॅडमी अवॉर्ड, जम्मू यूनिवर्सिटी के ऑनररी डॉक्टोवरेट, उस्ताद हाफ़िज़ अली ख़ान पुरस्कार, महाराष्ट्रा गौरव पुरस्कार, इत्यादि से नवाज़ा गया.
पंडितजी बॉलटिमुर, यूयेसे के ऑनररी सिटिज़न हैं.
पंडित जी की मात्रभाषा डोगरी है और वो गायक उमा दत्त शर्मा के सुपुत्र हैं पर उनका संतूर की तरफ ख़ासा रुझान था
उनके पिता ने उनकी ट्रैनिंग 5 साल की उम्र से शुरू की. शुरुआती दिनों में उन्होने तबला भी सीखा.
वो भारत के पहले ऐसे संतूर वादक थे जिन्होने रागों की मधुर ध्वनि संतूर पे बजाई.
तेरह साल से संतूर की साधना में लीन पंडित शिव कुमार की साधना आज भी जारी है. उनका पहला पब्लिक पर्फॉर्मेन्स 1955 मुंबई में था .
बॉलिवुड और शास्त्रिय संगीत में अपने योगदान के लिए जाने जाने वाले पंडितजी ने अपना पहला सोलो आल्बम 1960 में रेकॉर्ड किया था.
1967 में उनका पंडित हरिप्रसाद चौरसिया और ब्रिज भूषण काबरा के साथ प्रोड्यूस किया हुआ कॉल ऑफ दी वॅली शास्त्रिया संगीत में एक मील का पत्थर साबित हुई. सिलसिला, फ़ासले, चाँदनी, लम्हे और दर्र उनके संगीत साधना का एक परिचय दर्शाता है.
उन्ही की देन है मोसे छल किए जाए हाय रे हाय देखो सैयाँ बेईमान में बजा तबला
उनके पुत्र राहुल ने भी अपने पिता की राह पकड़ संतूर वादन में अपना हाथ जमाया है.
संतूर 72 स्ट्रिंग्स से बना एक वाद्य यंत्र है जो की वॉलनट की लकड़ी से तैय्यार होता है.
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