कभी 2000 महीने में कमाने वाले किसान का बेटा आज सिंगापुर में लाखों में खेलने चला
- Arijit Bose
- Oct 30, 2017
- 3 min read

मज़दूरी और हर रोज़ की भागम भाग का दर्द झेल चुके दिलीप साहनी के परिवार के लिए दौलत क्या चीज़ होती है उसका अंदाज़ा लगा पाना अब तक काफ़ी मुश्किल था. जहाँ दो जून की रोटी की जद्दोजहद थी तो बच्चों की परवरिश कर पाना भी बायें हाथ का खेल कभी नही था.
दिलीप के पिता पेशे से किसान और ऑफ सीज़न में आइस क्रीम बेच कर घर वालों का पालन पोषण करते थे. दिलीप जिसे बहुत ही कम पैसे में गुज़र बसर करना पढ़ता था उसने कभी नही सोचा था की एक दिन ऐसा भी आएगा जब उसकी किस्मत पलट जाएगी.
23 वर्षीय दिलीप अभी तक एक बहुत कम पैसे में काम करने वाले श्रमिक थे. जो मखाना की उपज में समय व्यतीत करते थे. अपनी निष्ठा, मेहनत और द्रन निश्चय के चलते उन्हे अब सिंगापुर में 8 लाख pa के मेकॅनिकल इंजिनियर की नौकरी लग गयी है. एक खुश दिलीप पत्रकारों से कहते हैं की अब लगता है ज़िंदगी में सब अच्छा ही होगा.
दिलीप को अभी तक ना केवल आर्थिक बल्कि सामाजिक चुनौतियों का सामना करना पड़ा है.
दिलीप और उनका परिवार बाखूबी जानते हैं की आसान नही रहा यहाँ तक का सफ़र
एक ओर जहाँ दिलीप की तनख़्वाह लाखों में होगी अब, घर वाले बताते हैं की उनकी मासिक आए 2000 से 3000 प्रति माह थी अभी तक.
खानदानी खेती का काम परिवार पटना से 360 km दूर उत्तर पूरब में हरदा में करता है.
मखाने के उपजाऊ ज़मीन पे खेती करने के लिए हर साल दिलीप के परिवार को दरभंगा से पूर्णिया जाना पड़ता था जुलाइ और जन्वरी के बीच.
दिलीप एक पत्रिका से बात करते हुए बताते हैं की जब उन्हे पढ़ाई के लोन के लिए बेंकों का दरवाज़ा खटखटाया तो हर कोई कन्नी काट गया.
जब बेंकों का सहारा नही मिला तो उनके छोटे भाई विजय साहनी आगे बढ़के आए और उन्होने टाइल्स के यूनिट में नौकरी ली और बड़े भाई का हाथ मज़बूत किया.
पिता ने ना केवल किसानी का काम किया, बल्कि नेपाल में आइस क्रीम की बिक्री करके घर पे लोगों का भरण पोषण किया.
दिलीप ने लगातार अपने घर वालों का खेती किसानी में हाथ बटाया.
दिलीप के लिए एक आठ लाख की नौकरी पाना इस लिए भी बड़ा है क्यूंकी इस गाओं से पहले कोई इस ख्याति का हक़दार नही रहा.
आनटोर गाओं में वो क्लास 10 पास करने वाले पहले व्यक्ति थे. 2011 में उन्होने अपने दम पर ये कर दिखाया. फर्स्ट डिविषन में उन्होने JNJV हाइ स्कूल, नवादा, बेनीपुर से पास किया.
बारवी की परीक्षा उन्होने बहेरा कॉलेज, दरभंगा से पास किया 2013 में
हालाकी बहुतों ने दिलीप को बेकार समझा पर वो हार नही माना और डटा रहा, आख़िर सफलता ने उसके कदम चूम ही लिए.
साल 2016 में उनको एंपी सरकार के टोप्पेरस अवॉर्ड से सम्मानित किया गया.
स्टील कंपनी संगम ग्रूप ने उन्हे 8 लाख साल का पॅकेज दिया जिसे उहोने कुबूलने में देर नही की.
हालाकी दिलीप ऊँची उड़ान भर सकते हैं अब पर उनका मूल मकसद ज़िंदगी में मखाना मज़दूर और श्रमिकों के लिए काम करना है. वो चाहते हैं की मज़दूरों के बच्चों को एक अच्छी ज़िंदगी मिले.
हर किसी का एक प्रेरणा स्रोत होता है और दिलीप पूर्णिया SP निशांत तिवारी से प्रेरणा लेते हैं जिन्होने, ‘मेरी पाठशाला’ नामक एक पहेल की शुरुआत की जिससे ग़रीब बच्चों को मदद मिल सके.
10,000 से ज़्यादा माइग्रेंट मज़दूर दरभंगा और मधुबनी जिलों से हैं जो पूर्णिया में मखाना की खेती करते हैं. आज हर कोई दिलीप की ओर आस लगाके देख रहा है की उनके जैसे हर कोई अपनी ज़िंदगी में एक नया पन्ना पलट सके और कुछ अच्छा महसूस करे. एक ओर जहाँ देश में बेरोज़गारी और भुकमरी चरम पर है, दिलीप आपको एहसास दिलाते हैं की अगर आप में चाह है, तो राह खुलने में देर नही लगती.
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