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किसे मालूम था येल में घुटन महसूस करने वाला हरफ़नमौला टॉम एक दिन बहुत बड़ा सितारा बनेगा

  • Writer: Arijit Bose
    Arijit Bose
  • Oct 4, 2017
  • 4 min read
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किसी भी कलाकार के लिए सबसे बड़ा होता है उसका उसके ऑडियेन्स से लगाओ, और किसी भी थियेटर से जुड़े कलाकार के लिए और भी ज़रूरी हो जाता है की वो मंच पर ज़्यादा से ज़्यादा समय बिताए.

टॉम आल्टर की कहानी इस लिए प्रेरणादाई है क्यूंकी ऐसे समय में जब विदेश में पढ़ाई करना एक ट्रेंड बन गया है, ऐसे में टॉम आल्टर येल यूनिवर्सिटी के गलियों को छोड़ भारत का नाम रोशन करने के लिए परदेस चले आए अपने धरती अमेरिका से.

टॉम आल्टर अपने आखरी दिनों में स्टेज 4 स्किन कॅन्सर से ग्रसित थे पर वो उस भयानक बीमारी का दर्द अपने सीने में दबाके आगे बढ़ते रहे. अपने आखरी कुछ प्रॉजेक्ट्स में सुनने में रहा है की उन्होने ये बताया ही नही की उन्हे कॅन्सर है.

जब उनके देहांत की खबर सामने आई तो इंडस्ट्री को गहरा झटका लगा. उनके करीबी और सहकर्मी सबकी आँखें नम हो गयी. अपने ज़िंदगी में एक अमरीकी मूल के होने के बावजूद दिल से देसी टॉम आल्टर को जितना प्यार अमरीका में नही मिला उससे कहीं ज़्यादा भारत में मिला अपने कला के समर्पण के लिए .

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अपनी हिन्दी और उर्दू ज़बान पे मज़बूत पकड़ के चलते उन्हे ख़ासा पसंद किया बॉलीवुड में. हरफ़नमौला टॉम आल्टर ने कभी भी अदाकारी में कोई कमी नही छोड़ी.बहुमुखी प्रतिभा के धनी टॉम आल्टर ने एक ऑल राऊंदर के रूप में एक अलग पहचान बनाई. मैने जो फिल्में देखी उनमे बॉब क्रिस्टो के बाद अगर कोई फिरंगी बॉलीवुड में देखा तो वो आल्टर थे.

आल्टर का जनम मसूरी में हुआ, उनके दादा दादी भारत में तकरीबन एक सदी पहले 1916 में ओहाइयो से आए मिशनरी के रूप में. उत्तर भारत में उनका गुज़रा बचपन उन्हे उनकी तालीम भी दे गयी और उन्हे हिन्दी और उर्दू में परिपक्व भी बनाया.

18 साल की उम्र में, टॉम आल्टर उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका गये और एक वर्ष के लिए येल में अध्ययन किया. हालांकि, उन्हें येल में पढ़ाई की कठोरता पसंद नहीं आई और एक साल बाद लौट आय. 1 9 वर्ष की आयु में, आल्टर ने शिक्षक के रूप में काम किया, सेंट थॉमस स्कूल, जगधरी, हरियाणा में. उन्होंने यहां छह महीने के लिए काम किया, साथ ही साथ अपने छात्रों को क्रिकेट में प्रशिक्षण दिया. अगले ढाई सालों में, आल्टर ने कई काम किए, वुडस्टॉक स्कूल, मसूरी में कुछ समय के लिए अध्यापन किया, और अमेरिका में एक अस्पताल में काम कर रहे थे, और जगधरी में फिर काम करने से पहले भारत लौट आए.

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चेतन आनंद द्वारा निर्देशित देव आनंद की फिल्म ‘साहब बहादुर‘ में उनको पहला ब्रेक मिला. हालांकि पहला रिलीज़ रामानंद सागर का चरस था इसके बाद राम भरोसे, हम किसीसे कम नहीं, परर्विश में भूमिका निभाई. उन्होंने अभिनेता जीवन के लिए फिल्म अमर अकबर एंथोनी में जीवन द्वारा निभाई दो भूमिकाओं के निर्दोष व्यक्ति के लिए डब किया.

सरदार में, भारतीय नेता सरदार पटेल की 1993 की फिल्म की जीवनी, जिसने भारत के विभाजन और आजादी के आसपास की घटनाओं पर ध्यान केंद्रित किया, अल्टर ने लॉर्ड माउंटबेटेन को चित्रित किया.

बॉलीवुड में यादगार उनके सफरनामे में ख़ासकर शतरंज के खिलाड़ी, क्रांति, परिंदा जैसी फिल्मों के लिए उन्हे याद किया जाता है.

1994 में उनके डॉन केशव कालसी के रोल को भी ख़ासा सराहा गया. बॉलीवुड में चाहे वो डॉक्टर डांग का बाँया हाथ हो कर्मा में या फिर वीर–ज़ारा का डॉक्टर,आल्टर ने हर उस रंग को जिया जो की बॉलीवुड में वो जी सकते.

मॉलीवुड में वो पिछले साल अनुरागा करिकीन वेल्लाम में दिखे जिसे निर्देशित किया खालिद रहमान ने.

राज कपूर की “राम तेरी गंगा मैली“ हो या फिर 1990 की आशिकी या फिर 2004 का लोकनायक, आल्टर ने अलग अल्ग किरदारों में लोगों का दिल जीता.

हॉलीवुड के पीटर टूले के साथ उन्होने “वन नाइट वित थे किंग” में आक्टिंग की.

रुपेहले पर्दे के अलावा, छोटे पर्दे पर भी वो अपनी जगह बनाने में सफल रहे. अपने समय में काफ़ी पॉपुलर ज़बान संभाल के 90 के दशक में अपनी अलग जगह बना चुकी थी टीवी पे.

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हालाकी जानकार ये भी कहते हैं की आल्टर के आक्टिंग के कद के हिसाब से उन्हे रोल्स नही मिले, पर ये उतना ही बड़ा सच है की वो थियेटर के लिए अमर रहेंगे. FTII के उनके पुराने यार बेंजामिन गिलानी और नसीरूदीं शाह के साथ उन्होने मिलकर थियेटर को एक नया आयाम दिया.

“वेटिंग फॉर गडो“, मिर्ज़ा घालिब और साहिर लुधियानवी जैसे किरदारों की भी काफ़ी चर्चा रही

बहादुर शाह ज़फ़र, नेहरू, मौलाना आज़ाद और आख़िर में गाँधी. इन सब को आल्टर ने बाखूबी जिया

उनकी फिल्मों की ओर रुझान तब बढ़ा जब वो पहली बार राजेश खन्ना और शर्मिला टागॉर की आराधना देखे. आक्टिंग का ऐसा बुखार अन पर चढ़ा की वो फिर ठान लिए की चाहे वो रंगमंच हो या फिर सिनिमा वो अपनी छाप ज़रूर छोड़ेंगे.

पद्मश्री सम्मान से नवाज़े गये टॉम आल्टर को बच्चे भी याद करते हैं उनके शक्तिमान के गुरु या फिर कॅप्टन व्योम के बॉस के रोल के लिए.

किंग ऑफ परीस्तान का रोल हातिम में भी बच्चे खूब याद करते हैं.

हाल्हि में उन्होने रसकिन बॉन्ड के रचना पे आधारित, भार्गवा सैकिया की दी ब्लॅक कॅट के लिए शूट किया था.

आल्टर ने सबसे लंबी दौड़, रीरन अट राइल्टो और बेस्ट इन दी वर्ल्ड सहित किताबें लिखी हैं वह क्रिकेट में विशेष रुचि के साथ एक खेल पत्रकार भी थे, जिस पर उन्होंने स्पोर्ट्स्वीक, आउटलुक, क्रिकेट टॉक, रविवार पर्यवेक्षक और देबोनियर जैसे व्यापक प्रकाशनों में लिखा है.

बहुत ही कम लोग जानेंगे की आल्टर ने सचिन तेंदुलकर का सबसे पहला इंटरव्यू भी लिया. उन्होने कॉमेंटरी में भी अपना हाथ जमाया.

उनकी बड़ी बहन, मार्था चेन, पेंसिल्वेनिया विश्वविद्यालय से दक्षिण एशियाई अध्ययन में पीएचडी है और हार्वर्ड विश्वविद्यालय में सिखाती है. उनके भाई जॉन एक कवि और एक शिक्षक हैं.

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