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कॅन्सर की बाज़ी जीत के मानवता की सेवा करने वाले को मटका मॅन कहते हैं

  • Writer: Arijit Bose
    Arijit Bose
  • May 3, 2019
  • 3 min read

कॅन्सर आदमी को अंदर से खोखला बना देता है. इंसान की रूह अक्सर काँप जाती है इस बीमारी से. बहुत ही कम लोग ज़िंदा बच पाते हैं इसके अभिशाप से. एक ऐसे युग में जब नामचीन सितारे अपने कॅन्सर से लड़ाई के बारे में ट्वीट करते थकते नहीं, तो एक ऐसे इंसान की कहानी जो लड़ा भी, विजयी भी हुआ और आख़िरकार अब वो समाज के लिए भला करने की भी ठान के जीवन जी रहे हैं.

हम बात कर रहे हैं दिल्ली के अलगरतनाम नटराजन की, जो की मिट्टी के मटके में पानी भरके प्यासे को पानी पिलाते हैं, तपती गर्मी में. कहते हैं प्यासे को पानी पिलाना पुण्य का काम होता है, ऐसे में दिल्ली वासियों के लिए मटका मॅन किसी भगवान से कम नही हैं.

चाहे मुनिसिपल कर्मचारी हो, रिक्कशे चालक हो, सड़क पर बैठे विक्रेता हो या फिर जमादार हो. हर एक की हाज़री, मटका मॅन के दरबार में एक बार तो होती ही है. शहर के नाना हिस्सों में मटके रखे गये हैं जहाँ से प्यासे अपनी प्यास बुझाते हैं.

शहर के 80 मटकों में हर दिन मटका मॅन पानी भर देते हैं..

70 साल की उमर वेल मटका मॅन हर सुबह भोर पार उठते हैं और अपनी गाड़ी में करके हर मटके में पानी भर के आते हाँ जहाँ लोग पानी की तलाश में आते हैं.

ग़रीबों को पानी पिलाने का बीड़ा उठाना सराहनिय भी है और चुनौतीपूर्णा भी. क्रांति की एक अलग अलख जगाने वाले अलगरतनाम 2014 से इस तरह से मानवता की सेवा कर रहे हैं.

शुरुआत उन्होने अपने घर के बाहर एक वॉटर कूलर लगाने से की.

कभी ऑक्स्फर्ड स्ट्रीट लंडन में अपना डेरा जमाने वाले आज वो भारत की राजधानी दिल्ली में रहते हैं.

जब नटराजन ने शुरुआत की तो लोगों ने उन्हे दिल्ली सरकार का कर्मचारी समझा पर अब लोगों की धारणा बदली है.

पानी बाँटने वाले मटका मॅन आज कल फल और अन्य खाने के चीज़ें भी बाँटते हैं.

नटराजन ने अपने ज़िंदगी के 40 साल लंडन में बिताए हैं.

इंटेस्टाइनल कॅन्सर से ग्रसित वो देश वापस आए.

उन्होने लावारिस लोगों की देख भाल भी की, लंगर का वितरण किया चाँदनी चॉक में और कई लोगों का क्रियाकर्म भी किया.

उनकी गाड़ी एक Van है जिसमे 800 लीटर का टांक फिट किया गया है जिससे वो पानी ढो पाते हैं.

महीने में मटकों में तकरीबन 2000 लीटर पानी आता है गर्मियों के महीने में.

मटकों के अलावा उनके 100 साइकल पंप भी हैं, जिसका लाभ लोग उठाते हैं.

जब उन्होने शुरुआत की तो लोगो ने विरोध भी किया पर अब सब ठीक चल रहा है.

कॅन्सर से मुक्ति मिल गयी नटराजन को क्यूंकी शुरुआती चरणों में ही उसका इलाज करवा लिया गया.

अच्छे कार्यों के शौकीन, नटराजन ने छोटी से चीज़ जैसे सब्ज़ी बेचना और फल बेचने से परहेज़ नही किया.

अपनी जमा पूंजी को खर्च करने वाले, मटका मॅन, आज कई नौजवानों के लिए प्रेरणा स्रोत हैं. उनके जज़्बे को देखते हुए लोगों ने उनका हाथ बटाना भी शुरू कर दिया है. जिस युग में आदमी आदमी को नीचे गिराने में और सेवा भाओ से कोई काम करने में दो बार सोचता है, ऐसे समय में मटका मॅन कलयुग के पवन पुत्र या विज्ना हरता से कम नही. ऐसे लोगों से उम्मीद जागती है की आदमी चाहे तो मानवता की सेवा निस्वार्थ भाओ से कर सकता है फिर चाहे कितने अर्चने आयें.

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