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Writer's pictureArijit Bose

एक मा ऐसी भी : मया, मोह और ममता से परिपूर्ण गौरी सावंत ने एक नयी मिसाल पेश की है

किसी किन्नर को धिक्कारने से पहले सोचिएगा, क्या भगवान के अर्धनारेश्वर रूप को आप नकार पाएँगे? या फिर क्या आप गौरी सावंत जैसा इंसान बन पाएँगे?

मा की ममता क्या होती है इससे हम में से कोई भी अछूता नही है, पर कुछ ऐसे भी किस्से हैं इस दुनिया में जो हम और आपको ममता का एक अलग अंदाज़ अपनाने को मजबूर कर देता है.

दुनिया जिन्हे किन्नर, छक्का, हिजरा या हाए हाए कह के नकार देते हैं उनके अंदर भी एक दिल है, इस बात से कोई भी मना नही कर सकता. वो मा भले ही ना बन पाए पर कुछ उनमे से ऐसे भी होते हैं जो मातृत्व की हर दिन कामना करते हैं और कुछ उस प्रयास में सफल भी होते हैं. भले ही उन्हे बच्चा गोद ही क्यूँ ना लेना पढ़े.

ऐसा ही कुछ गौरी सावंत की कहानी है, जिन्होने एक अनाथ को ना केवल अपनाया बल्कि उसको अपनाया, अपना नाम दिया और उसके मंगल के लिए हर तरह से प्रयास भी कर रही हैं.

समाज के लिए बदलाओ की भावना से काम करने वाली गौरी ना केवल हिम्मती, बड़े दिलवाली और अटल मानसिकता की इंसान हैं, उन्होने अकेले के दम पे किन्नर और समलैंगिक समाज के लिए काफ़ी काम किया है.

किन्नर से पहले एक नारी के स्वरूप में उन्होने एक बच्ची गायत्री को 2001 में गोद लिया था, कुछ वर्ष पूर्व, जो आज 17 साल की हो गयी हैं. कभी आंटी सुनने की आदि, गौरी को मातृत्व का एहसास तब हुआ जब उस फूल जैसी बच्ची ने गौरी को मा कहके बुलाया.

एक मा के नाते गौरी ने गायत्री को नहलाया, धुलाया, खाना बनाके खिलाया, बाल सवारा, नये कपड़े खरीद दिए और टाइम टू टाइम खेला भी उसके साथ. दोनो में एक अटूट रिश्ता बहुत जल्दी बन गया.

गायत्री को गौरी ने गोद में तब लिया जब अफवाहें फैल गयीं थी की उसे सोनागाछी के देह व्यापार के बेज़ार में बेच दिया जाएगा.

गौरी को ताने तो सुनने पड़े, उन्हे लोगों की अभद्र टिप्पणियाँ भी हजम करनी पड़ी पर उन्होने कभी भी अपने मा होने का कर्तव्य छोड़ा नही.

बचपन से ही लड़कियों के बीच रहने वाली गौरी कब नारित्व का चोला धारण करली, पता ही नही चला. दादी की साड़ी को वो कभी बड़ी शौक से लपेट लेती और अपने आप को अच्छा महसूस करती. एक किन्नर होने का एहसास जितना उन्हे अपने नही दिलाते थे, उससे कहीं ज़्यादा समाज उनको प्रताड़ित करता था.

सात साल की उमर में गौरी ने अपने मा को खो दिया. पिता ने तभी उनका साथ छोड़ दिया जब घर में बात फैली की वो किन्नर हैं.

जब सारे दरवाज़े बंद दिखाई देने लगे तो गौरी ने ठानी की वो किसी ऐसे को अपनाएँगी और उसकी देख रेख करेंगी जिसका ना परिवार है और ना कोई ठिकाना.

तीन चार दिन एक समलैंगिक दोस्त के साथ रहने के बाद उन्होने हमसफर ट्रस्ट का दामन थामा. ऊपर वाले की दुआ से उन्हे कभी भीख नही माँगना पड़ा.

उन्होने LGBT के लिए आधार पहचान के लिए निरंतर संघर्ष किया.

देश में तमाम देह व्यापार में फँसे महिलाओं के लिए गौरी ने एक सपना देखा है, की वो उनके बच्चों को नानी का घर नामक एक विश्राम स्थल देंगी. इससे ना केवल ऐसे बच्चों को शिक्षा मिलेगी, बल्कि उनका भविष्य भी सुनेहरा होगा.

इस अनोखे शक़सियत ने हम सब को और सभ्य समाज को एक आएना दिखाया है की कभी भी किसी वर्ग को नीचा मत दिखाईए, क्यूंकी उसका लैंगिक समुदाय अलग है. हो सकता है उसमे काबिलियत और इंसानियत आपमे से कहीं ज़्यादा हो. हमें ये भी समझना होगा की भगवान ने हम सब को बनाया है. कुछ कमियाँ हर एक में है पर हम सब उस ऊपर वाले के बच्चे हैं.

शायद ये गौरी की ही अच्छे कर्मों का फल है की आज उनका नाम 12 नामचीन लोगों में शुमार है जो चुनाव के बारे में लोगों को बताने के लिए अंबासडर चुने गये हैं.

महाराष्ट्र में 2086 किन्नर रिजिस्टर्ड हैं वोटिंग के लिए.

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