एक ऐसी शाही प्रेम कथा जिसने लिख दी करवा चौथ की इबारत
- Arijit Bose
- Oct 28, 2018
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आपने अक्सर लोगों को ताना मारते सुना होगा की बड़ी सती सावित्री बनती है, कभी आपने सोचा की क्यूँ सावित्री को एक आदर्श नारी माना जाता है और हर साल करवा चौथ लोग मनाते हैं. चलिए जानते हैं.
सावित्री मद्रा देस के राजा अस्वपति की बेटी थी. जब उनकी शादी करने की उम्र हुई तो उन्होने सत्यवान से शादी करने की ठानी. राजा ड्यूमतसेन के बेटे राजकुमार सत्यवान घर और साम्राज्य से तबसे दूर रहने लगे जब उनके पिता से शाही रियासत छिन गयी. वो जंगल में अपने अंधे पिता और माँ के साथ रहते थे.
नारद मुनि जिनकी पहुँच दूर दूर तक थी और जिनके पास बहुत सारी जानकारी रहती थी उन्हे बात पता चला तो उन्होने सावित्री के पिता को बताया की शादी के पूर्व सत्यवान की जान चली जाएगी. ज़ाहिर तौर पर परिवार चिंतित हो उठा उन्होने सावित्री को समझना भी चाहा परंतु वो अपने निर्णय पर अडिग थी. उसने सत्यवान से ही शादी रचाया और दोनो जंगल की ओर चले गये.
क्यूंकी सावित्री को जिस दिन सत्यवान की मृत्यु होगी उसका अंदाज़ा था उसने उससे तीन दिन पहले अन्न जल त्याग तपस्या शुरू की. नियती के मुताबिक सत्यवान लकड़ी काटने गये और कुछ देर बाद गिर पड़े. सत्यवान उस दिन मर गये पर सावित्री ने यमराज का पीछा किया.
यमराज ने प्रसन्न हो उसे एक वर माँगने को कहा. उसने अपने पति के माता पिता की ज्योति वापस माँगी. यमराज मान गये और फिर उसने उसी प्रकार पीछा करने के बाद एक और वर माँगा की उसके ससुर और 100 भाइयों का साम्राज्य उन्हे वापस मिल जाए. यमराज ने ये भी मान लिया. फिर क्या था ऐसे कर कर के सावित्री ने सौ पुत्रों का वर माँगा और आखरी में अपने पति सत्यवान को जीवन दान दिला दिया ये कहके की बिना पति हमारा परिवार फलेगा फूलेगा कैसे. यहाँ पर यमराज को भी झुकना पड़ा.
सावित्री अब वापस पहुँची उसी वट वृक्ष के पास जहाँ उनके पति का शरीर था. उन्होने एक परिक्रमा किया और देखा की उनके पति ने आँखें खोली.
सावित्री और सत्यवान दोनो घर लौटे. सारे वरदान सच हो गये और तबसे अमर हो गयी सावित्री सत्यवान की कहानी.
तबसे लेके आज तक हर पतिव्रता नारी करवा चौथ या वट सावित्री का व्रत करती हैं और बरगद के पेड़ को पूजती हैं. कार्तिक मास के कृष्णा पक्षा चतुर्थी को हर पतिव्रता स्त्री अपने पति के चिरायू होने की कामना करती है. करवा चौथ और संकश्ती चतुर्थी एक ही दिन पढ़ता है.
प्रमुखतः करवा चौथ पँजाब, हरयाणा, राजस्थान, हिमाचल प्रदेश और उत्तर प्रदेश में मनाया जाता है. इसको सूर्योदय और रात के बीच मनाया जाता है.
जैसे जैसे समय बीतता गया अविवाहित लड़कियाँ भी करवा चौथ मनाने लगी.
करवा चौथ के दिन व्रत के अलावा नारी साज़ – शृंगार करती हैं. आज के ज़माने में उनका ब्यूटी पार्लर में जाना आम बात है. मेहन्दी भी जोरो शॉरो से लगाया जाता है.
ख़ासी खाद्य पदार्थ जो उन्हे उनके ससुराल वाले देते हैं उसे सरगी कहा जाता है.
छन्नी से चाँद देखने के बाद वो चाँद का जल अभिषेक करते हैं एक छोटे से हाँडी से जिसे कड़क कहा जाता है. इसके उपरांत वो पानी पीते हैं अपने पति के हाथों.
आज के युग में जहाँ तकनीकी तरक्की ने रिश्तों को नया आयाम दिया है. जहाँ लोग ऑनलाइन रिश्ता बना के तो रखते हैं पर असल ज़िंदगी में दूरियाँ बढ़ रही हैं, करवा चौथ जैसे मौके आपको ये याद दिलाते रहते हैं की कुछ दिल के रिश्ते आमने सामने ही निभाए जाते हैं. क्यूंकी दिल का रिश्ता बड़ा ही प्यारा है, क्यूँ गाना तो सुना ही होगा आपने?
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