आतंक के बदनाम गलियों को छोड़ वाणी ने देश के लिए जीवन त्याग दिया
- Arijit Bose
- Nov 28, 2018
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बड़ी अजीब बात है. एक ऐसे दौर में जब हम आतंकवाद को जड़ से ख़तम करने की बात कर रहे हैं, तो वंही एक ऐसा कहानी सामने आता है, जो बताता है की मौका मिले तो आतंकी भी वतन के लिए लड़ सकता है. हर बार ज़रूरी नही की वो निर्दोष और निहत्तों को ही मार गिराए. अपने देश की साख बचाने के लिए भी वो अपना लहू बहा सकता है.
कुछ ऐसी ही कहानी है लॅन्स नायक नज़ीर अहमद वाणी की. देश के लिए लड़ते हुए शहीद होने वाले वाणी कभी आतंक फैलाने के कारोबार का हिस्सा थे. पर जब उन्होने उस रास्ते तो त्यागने की ठानी तो उन्होने भी मन बनाया की वो देश के लिए कुछ करेंगे.
दिवंगत वाणी के पिता को एक सेना का जवान गले लगाता हुआ एक तस्वीर पे दिखाई पड़ता है. ज़ाहिर तौर पे फोटो काफ़ी वायरल हुई है. इस नज़ारे को देखते हुए कईओं की आँखें भी नम हो गयी. सेना ने अपने ट्विटर हॅंडल पर वाणी के पिता और एक सिपाही की गले लगते तस्वीर दिखाई और ये भी लिखा की आप अकेले नही.
वाणी वीरगति को प्राप्त तब हुए जब वो सेना की एक टुकड़ी के साथ ऑपरेशन पे थे शोपियन में. वाणी को लड़ाई में बहुत बुरी तरह चोट लगी और उन्हें श्रीनगर के 92 बेस हॉस्पिटल ले जाया गया जहाँ उन्होने दम तोड़ दी.
नज़ीर अहमद वाणी ने ना केवल छे आतंकियों को मारने में मदद की बल्कि खुद भी अपनी जान गवा दी. उन्हे दो बार सेना मेडल से सम्मानित किया जा चुका है. एक बार 2007 में और एक बार स्वतंत्रता दिवस के एक दिन पूर्व.
कुलगाम में रहने वाले, अहमद, टेरिटोरियल आर्मी के साथ थे पर आखरी बार वो 34 राष्ट्रीय राइफल्स के साथ थे रविवार को. 38 साल के वाणी 2004 में टेरिटोरियल सेना के 162 बटॅलियन से जुड़े. उससे पहले वो एक इखवान थे. सेना में कार्यरत वाणी को बहुत इज़्ज़त और गर्व से देखा जाता था.
तिरंगे में लिपटे वाणी का पार्थिव शरीर पहले कुलगाम पहुँचा उनके घर और फिर पूरे रीति रिवाज़ के साथ अपने आखरी गंतव्य के लिए रवाना हो गया. ये जगह खबरों में अक्सर बना रहता है. गाँव चारों ओर से कोइन्मूह जैसे जगहों से घिरा हुआ है जो अपने आतंकी वारदातों की वजह से सुर्खियाँ बटोरते हैं.
वाणी के जनाज़े के दौरान चक असमूजी गाँव के सभी लोगों की आँखें नम हो गयी.
सेना ने एक भावभीनी श्रद्धांजलि दी उन्हें बादामी बाघ कांटोनमेंट के 15 कोर हेडक्वॉर्टर्स में.
उन्हें कब्रिस्तान में बाइज़्ज़त दफ़नाया गया 500 से 600 गाँव वालों के बीच. उन्हें एक 21-बंदूकों की सलामी भी दी गयी.
उनको जानने वाले उनके अदम्य साहस के लिए उन्हें हमेशा याद रखेंगे ऐसा उनको जानने वाले मीडीया से बात करते हुए बताते हैं. वाणी की पत्नी और दो बच्चे हैं जो उनके जाने की शोक में हैं.
तो जिन्होने हिंसा को गले लगाया है उनके पास अब भी समय है सुधरने के लिए. वो चाहें तो अपने देश प्रेम के जज़्बे तो तराश सखते हैं.
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