अर्नब और मैं
- Arijit Bose
- Jun 30, 2016
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इक्कीसवी सदी में भारत विज्ञानंके क्षेत्र में कई देशों को टक्कर देनेका कलेजा रखता है। एक ओरजहां हॉलीवुड में इ टी , मार्सअटैक्स , इंडिपेंडेंस डे औरसाइयन्स जैसी कई फिल्में लोगोंको दशकों तक रिझाती रही हैं,वहीं भारत भी बॉलीवुड में साईंफाई फिल्मों से अछूता नहीं रहाहै। हालही में रिलीज़ हुयी पी के की बात करें या फिर बहु चर्चित कृष सीरीज की। समाज के हर तपके को ये फिल्में भाती आई हैं। पर हम आज मार्शियंस की बात नहीं कर रहे हैं। कुछ समय से ह्यूमन क्लोनकी बात बहुत प्रचिलित हुई है और आज इसी सन्दर्भ में एक सपने की बात करते हैं।
हर व्यक्ति इसी उधेर बुन में लगा हुआ है की किसी तरह वह अमर हो जाये तो कैसा हो। इस सोच कोलेकर के मैंने भी एक सपना देखा पर थोड़ा हटके। क्या ऐसा हो नहीं सकता की काम कोई और करेतारीफ़ मेरी हो, होम वर्क कोई और करे वाहवाही मेरी हो , नौकरी कोई करे पगार मेरी हो और गलती मैंकरून और डांट किसी और के नसीब में हो। चौंक गए ना।
आँखों के आगे धुंदला एक चेहरा था जो धीरे धीरे साफ़ होता नज़र आ रहा था। यूं मानों मैं एक आईने केआगे खड़ा हूँ। क्या मैं वाकई एक अजूबा अपने आगे होते देख रहा था। उस सुबह ठीक नौ बजे थे, आँखबस खुली ही थी और नियुसपेपर और चाय का इंतज़ार हो रहा था की एक हट्टा कट्टा नौजवान बिलकुलमेरी ही तरह देखने में मेरी तरफ बढ़ रहा था। कुछ पल के लिए मेरी सांसें ऊपर की ऊपर नीचे की नीचेरह गयी। एक हट्टा कट्टा नौ जवान हमशक्ल को देख यूं लगा की कोई अल्लाहाबाद के कुम्भ में बिछड़ाहुआ भाई तो नहीं। बहुत सोचा क्या ये वास्तविकता है फिर पता चला की वह हमशक्ल मेरा क्लोन है। येतब पता चला जब मुझे वह आगे हाथ बढ़ा के बोला, हाई मैं आपका ही एक अंश अथवा क्लोन अर्नब हूँ।बचपन से ही निठल्ला था और अब और भी मज़े होने वाले थे। मानों मशहूर गायक लुइस आर्मस्ट्रांग काव्हाट अ वंडरफुल वर्ल्ड कानों में गूँज रहा हो। हमेशा ये सोच रखने वाला लड़का की ज़िन्दगी और पर्यावरण दोनों ही एक दूजे से अलग हैं, आज अचानक से एक नयी सोच की ओर आकर्षित हो चला था।प्लान किया की अबसे काम अर्नब करेगा और उसका फल मैं उठाऊंगा।
समय के साथ साथ सारे होमवर्क असाइनमेंट और प्रोजेक्ट वह करने लगा। मैं अपनी शामें बहार खेलनेमें गुज़ारता और वह मेरे छोटे बड़े सब काम कर देता। कुछ ही हफ्ते में अर्नब की बदौलत मेरे ग्रेड्स भीसुधर गए और मैं वाह वाही भी बटोरना शुरू कर दिया था। टीचर्स की आखों का तारा बनके अब न तोमुझे स्कूल जाने की टेंशन थी और न ही माँ बाबूजी के मार का डर। उसी साल साल के आखिर में मैंक्लास में ३र्द भी आ गया। इत्तेफ़ाकन उसी साल पूर्व प्रधान मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी मेधावी छात्रों कोपुरस्कृत करने वाले थे बतौर चीफ गेस्ट। शायद ही मैंने सोचा होगा की ऐसा दिन भी मेरी ज़िन्दगी मेंआयेगा।
२० दिसंबर २००३ की शाम विद्यालय के प्रांगण में मैं जिस पल का बेसब्री से इंतज़ार कर रहा था वह आही गया। जैसे ही नाम पुकारा गया मानों मुझे एक अजीब सा एहसास हुआ। मानों पैरों में किसी ने बढेपत्थर बाँध दिए हों। आगे जैसे जैसे बढे और बस किसी तरह ऊपर स्टेज पे चढ़े ही थे की चमचमाता ट्रॉफीदिखने लगा। मन में परमानंद का एहसास हुआ। परन्तु जैसे ही मैं ट्रॉफी हाथ में लेने बढ़ा एक अचानकझटके के साथ मैं अपने आप को कमरे में बिस्तर पे पड़ा पाया और माँ मुझे जगाने के अथक प्रयास कररही थीं । जैसे ही जगे पता चला की यह सिर्फ एक सपना था। मन ही मन मैंने भी कहा बीटा बोसे सुधरजाओ ये तो बस एक सपना था।
खैर सपना था ये एक मेरा अपना और इस सपने से सीख लेने के बाद मैं समझा की सब कुछ खुद हीकरना चाहिए और इसी के चलते आने वाले साल में मेरा रैंक बहुत अच्छा आया और मैं अव्वल नंबर सेपास हो गया। तो आप भी किसी अर्नब के चक्कर में मत पढियेगा अपनी किस्मत खुद बनाईये और देखियेकमाल।

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