सदी के महानायक अमिताभ बच्चन को कौन नही जानता. आज भी उनको ऑनलाइन उतनी ही इज़्ज़त मिलती है जितनी की ऑफलाइन. उनके दीवाने ना केवल उनके घर के चौखट पर पहुँच जाते हैं, बल्कि उनकी एक छोटी सी तक़लीफ़ को अपनाने में कोई कसर नही छोड़ते. शायद यही वजह है की शाहेंशाह आज भी अपने लेख, और बातों में अपने क्रोर चाहने वालों को याद करने में ज़रा सा भी संकोच नही करते.
अनगिनत फिल्में और बेशुमार प्यार के धनी अमिताभ बच्चन के लिए आज का दिन एक बुरा सपना बन के हर साल आता है और चला भी जाता है. बच्चन आज भी इस बात को कुबूलते हैं कि अगर उनके शुभचिंतक नही होते तो शायद आज से ठीक 36 साल पहले वो इस दुनिया को ही अलविदा कह देते.
दरअसल आज ही के दिन उन्हे कुली के शूटिंग के बाद फिर नया जीवन दान मिला था. कुली के शूटिंग के दौरान उन्हे एक बहुत गहरी चोट लगी थी. साल 1982, ऑगस्ट 2 था. बंगलोर यूनिवर्सिटी का कॅंपस था और दो तरफ दो महारथी. एक ओर पुनीत इस्सर, तो दूसरी ओर बच्चन. प्लान के मुताबिक़ बच्चन को एक टेबल के उपर आ के गिरना था पर ग़लत एंगल में गिरने के कारण उनको तेज़ चोट लग गयी. टेबल का एक कोना उनके पेट में भूक गया और उनमे इंटर्नल ब्लीडिंग और हेमरेज के चलते देश में मायूसी की हालत थी.
उन्हे तुरंत मुंबई के ईक बड़े हॉस्पिटल में ले जया गया. तुरंत ढेर सारे सर्जरीस और ट्रीटमेंट के बाद एक पल ऐसा भी आया जब उन्हे कुछ मिनटों के लिए क्लिनिकली डेड घोषित कर वेंटिलेटर पे डाल दिया गया. करीबन एक सप्ताह के लिए उनकी सेहत पे दवाई का कोई असर नही था. देश के नाना प्रांतों से लोगों ने मंदिरों में पूजा अर्चना की. कई लोग तो बच्चन के नाम की तीर्थ पे भी निकल गये, क्यूंकी हर कोई अपने सूपरस्टार को फिर से उसी रौब के साथ देखना चाहता था. कई लोग खाली पैर मीलों चलते.
एक अरसे बाद ऑगस्ट 2 को अमिताभ ने कुछ रेस्पॉन्स दिया जिसके बाद लोगों में थोड़ी बहुत उम्मीद जगी.
आंग्री यंग मान की ज़िंदगी ने एक और करवट तब ली जब खून चढ़ने के समय दूषित खून के चलते उन्हे हेपटाइटिस ब का शिकार होना पढ़ा.
कहा जाता है 200 लोगों से लिए गये 60 बोतलों में कुछ खून सही नही था और उससे अमिताभ की सेहत पे बुरा असर पढ़ा. जानकारों का कहना है की उस समय हेपटाइटिस ब देश में सिर्फ़ तीन महीने पहले पकड़ा गया था. ऐसे में इसकी जाँच भी उतनी ही मुश्किल थी उस समय.
ऐसे समय में जब अमिताभ बच्चन हर घर में एक जाना माना नाम हैं, ये भी उतना ही बड़ा सच है की उस हेपटाइटिस ब बीमारी के शेलेट चलते उनकी 75% गुर्दे डॅमेज हो चुके हैं. 2000 के बाद उनके गुर्दे की हालत काफ़ी बिगड़ी है.
कड़ी मशाक़्क़त के बाद जन्वरी 7, 1983 को बच्चन ने फिर से फिल्म की शूटिंग की शुरुआत की. जिन्होने तब फिल्म को देखा था उन्हे आज भी ये बाखूबी याद है की उस भयानक सीन में कुछ पल के लिए स्क्रीन को फ्रीज़ कर उन्होने किस जगह पर बच्चन को चोट लगी ये दर्शाने की कोशिश की. फिल्म निर्देशक मनमोहन देसाई ने ये सीन बच्चन के कहने पे दिखाया था.
माना जाता है की कुली में आखरी में कुली नो 786 को मरना था कादर ख़ान के कॅरक्टर के हाथोंन पर क्यूंकी देश में एक ल़हर दौड़ गयी थी बच्चन के पक्ष में, तो उन्होने बच्चन को फिल्म में ज़िंदा रखना उचित समझा. इस डर् से की पब्लिक गुस्सा ना हो जाए तो फिल्म को देसाई ने थोड़ा बदला आख़िर में.
आज जब बच्चन देश में एक बहुत बड़ा नाम हैं और हर बच्चा जो मुंबई जाता है उनके पदचिन्हों पर चलना चाहता है, तो ये वाक़या हर उस स्ट्रग्लिंग स्टार के लिए सबक है की ज़िंदगी में रुपेहले पर्दे पर दिखने वाला स्टार काफ़ी मशक़्क़त के बाद आसमान की बुलंदियों को छूता है.
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